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जो तुम्हें बुला रहा है, वह अभी दूर का संगीत है। तुम उसके साथ अगर तानपूरा बजाने लगे, वह करीब आने लगेगा।
तब बुला जाता मुझे उस पार जो
दूर के संगीत-सा वह कौन है? अभी दूर है संगीत। सहभागी बनो।
एक तो सुनने का ढंग होता है कि सुन रहे हैं तटस्थ भाव से; जैसे कुछ लेना-देना नहीं। सुन रहे हैं-एक निष्क्रिय अवस्था में मुर्दे की तरह। कान हैं तो सुन रहे हैं। एक तो निष्क्रिय सुनना है।
और एक सक्रिय सुनना है –प्रफुल्लित, आनंदमग्न, नाचते हुए, सहयोग करते हुए जैसे मैं नहीं बोल रहा हूं तुम्हीं बोल रहेहो; जैसे तुम्हारा ही भविष्य बोल रहा है, जैसे तुम्हारे ही भीतर छिपी हुई संभावना बोल रही है। मैं तुम्हारी ही गुनगुनाहट हूं। जो गीत तुम अभी गाए नहीं और गाना है उसी की तरफ थोड़े-से पाठ तुम्हें दे रहा हूं।
अभी जो तुम्हें लगेगा तानपूरा है, बजाते-बजाते वही तुम्हारी वीणा हो जाएगी। अभी तुम मेरे साथ बजाओगे, धीरे- धीरे तुम पाओगे तुम और मैं का फासला तो समाप्त हो गया न तो मैं हूं, न तुम हों-परमात्मा बजा रहा है। और तब तुम इस योग्य हो जाओगे कि कोई तुम्हारे पास आए तो वह अपना तानपूरा बजाने लगे।
प्राणों के अंतिम पाहुन
चांदनी धुला अंजन-सा विद्युत मुस्कान बिछाता सुरभित समीर पंखों से उड़ जो नभ में घिर आता वह वारिद तुम आना बन!
ज्यों श्रौत पथिक पर रजनी छाया-सी आ मुस्काती भारी पलकों में धीरे निद्रा का मधु खुलकाती त्यों करना तुमबेसुध जीवन!
अज्ञात लोक से छिप-छिप ज्यों उतर रश्मिया आती मधु पीकर प्यास बुझाने