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जब मैं आपका प्रवचन सनता हूं तो न जाने क्यों उसके प्रेम-संगीत में खो जाता हूं। मुझे लगता है कि आप सितार बजा रहे हैं और मैं तबला बजा रहा हूं। कभी लगता है कि मैं तानपूरा बजा रहा हूं और आप तान लगा रहे हैं। प्रभु मुझे यह क्या हो गया है? कृपा कर मुझे थामें !
थामें? धक्का देंगे! ऐसी शुभ घड़ी आ गई, तुम कहते हो, कृपाकर थामें? यही तो मैं चाहता हूं कि सभी को हो जो तुम्हें हुआ है।
यह जो मैं कह रहा हूं, यह शब्द नहीं, संगीत ही है। और इसे अगर तुम सुनना चाहते हो तो सुनने की जो श्रेष्ठतम व्यवस्था है वह यही कि तुम भी मेरे संगीत में सहभागी हो जोओ। मेरी इस लय में तुम भी तानपूरा तो बजाओ कम से कम तुम ऐसे दूर-दूर खड़े न रह जाओ। तुम इस आर्केस्ट्रा के अंग बन जाओ, तभी तुम समझ पाओगे ।
शुभ हो रहा है, सौभाग्य की घटना घट रही है। तुम डरो मत। दो तबले पर ताल! बजाओ तानपूरा! साथ मेरे गाओ, साथ मेरे नाचो । इसी नृत्य में तुम खो जाओगे। इसी खोने से तुम्हारा वास्तविक होना शुरू होगा। इसी नृत्य में तुम विसर्जित हो जाओगे; तुम्हारी सीमाएं असीम में डब जाएंगी। अचानक तुम पहली दफा जागोगे और पाओगे कि तुम कौन इसी खो जाने में नींद टूटेगीई, जागरण होगा। और तुम कहते हो प्रभु थामें । समझ रहा हूं तुम्हारी अड़चन भी तुम्हारे प्रश्न को भी समझ रहा हूं। क्योंकि जब कोई ऐसा डूबने लगता, तो घबड़ाहट स्वाभाविक होती है कि यह क्या हो रहा ? कहीं मैं पागल तो नहीं हुआ जा रहा? यहां कैसी वीणा और कैसा तबला?
पूछने में भी तुम डरे होओगे। प्रश्न को मैंने कहा तो बहुत लोग हंसे भी । उनको भी लगा ह क्या पागलपन है? तुमको भी लगा होगा, क्या पागलपन है? यह मैं कर क्या रहा हूं? यहां आ कि तबला बजाने? और यह कैसा तानपूरा मैंने साध लिया। यह कैसी कल्पना में मैं उलझा जा रहा हूं, यह कोई सम्मोहन तो नहीं? यह कोई मन की विक्षिप्तता तो नहीं? यह कैसी लहर मुझमें उठी?
मत घबड़ाओ, यही लहर तुम्हें ले जाएगी उस पार । यही लहर नाव बनेगी। इसी लहर पर चढ़ने को कह रहा हूं । चढ़ जाओ इस लहर पर। इस लहर को चूको मत। यह लहर डुबाए तो डूब जाओ। यह उबारे तो उबरो, डुबाए तो डूबो। इस लहर के साथ अपना तादात्म्य कर लो। इस लहर से लड़ो मत। इसके विपरीत तैसे मत। इससे बचने की चेष्टा मत करो।
तब बुला जाता मुझे उस पार जो
दूर के संगीत - सा वह कौन है?