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दोनों अलग हैं, दोनों में समभाव रखना है। दोनों एक ही हैं, समभाव रखना किसको है? और दोनों मुझमें ही हैं और दोनों में मैं हूं।'
व्यक्ति जहां शन्य हो जाता, वहा समष्टि के साथ एक हो जाता। इसलिए कहा कि ब्रहम को जो जान लेता, वह ब्रह्म वो जाता। सत्य को जो जान लेता, वह सत्य हो जाता। जो हम जान लेते हैं, वही हम हो जाते है।
अहं वा सर्वभूतेषु सर्वभूतान्यमों मयि।
इति ज्ञानं तथैतस्य न त्यागो न ग्रहो लयः।। ये छोटे-से चार सूत्र जब जनक ने कहे होंगे, तुम अष्टावक्र के आनंद की कल्पना नहीं कर सकते! जब शिष्य उपलब्ध होता है तो तुम गुरु की प्रसन्नता का अनुभव नहीं कर सकते। जैसे फिर से गुरु को परम आनंद मिलता है, जो उसे मिला ही हुआ था, वह उसे फिर से मिलता है। जब शिष्य में दीया जलता है तो जैसे गुरु के प्रकाश में और भी एक नया सूरज जुड़ा! हजारों सूरज वहा थे, एक हजार एक हुए इसकी ही अपेक्षा थी, इसलिए परीक्षा थी। इसकी ही अपेक्षा थी, इसलिए प्रलोभन था। जनक से यह संभावना थी, इसलिए जनक को जल्दी नहीं छोड़ दिया।
जिन शिष्यों को गुरु जल्दी छोड़ देता है, वह इसलिए छोड़ देता है कि उनकी संभावना बहुत नहीं है। उन्हें ज्यादा कसने में वे टूट जाएंगे। परीक्षा उतनी ही ली जा सकती है जितनी सामर्थ्य हो। परीक्षा सीमा के बाहर हो तो शिष्य को नष्ट कर जाएगी, बना न पाएगी।
जनक को आखिर तक खींचा, आखिरी प्रलोभन दिया ज्ञान का और त्याग का। ज्ञान और त्याग आखिरी बाधाएं हैं। जो उनके भी पार हो गया, वही मुक्त है।
जिसने ऐसा जान लिया कि मैं मुक्त हूं वही मुक्त है। इति ज्ञानं __ ऐसे तो अज्ञानी भी बड़ी ज्ञान की बातें कर लेते हैं। अक्सर अज्ञानी ज्ञान की बातें करते हैं। तभी तो अपने अज्ञान को छिपा पाते हैं। नहीं तो छिपाएगे कैसे? ज्ञान की बातों में अज्ञान खूब व्यवस्था से छिप जाता है। रोग हो, बीमारी हो, तो तुम स्वास्थ्य की चर्चा में छिपा सकते हो। अक्सर बीमार ही स्वास्थ्य की चर्चा करते हैं। घाव हो, तुम ऊपर से फूल लगा सकते हो; सुंदर वस्त्रों में ढांक सकते हो; मखमल रेशम में ढांक सकते हो। लेकिन उससे घाव मिटेगा नहीं।
तुम्हें अक्सर इस संसार में लोग कहते हुए मिल जाएंगे : सुख-दुख में समानता रखो, जीवन-मृत्यु में समानता रखो। लेकिन समानता रखो? तो इसका अर्थ ही यह हुआ कि दोनों असमान हैं और समानता तुम्हें रखनी है। यह तो चेष्टा हुई। जहां चेष्टा है, वहा ज्ञान नहीं। ज्ञान तो सहज है। सहज है तो ही ज्ञान है। इति ज्ञानं! जो चेष्टा से आता है, वह तो खबर दे रहा है कि भीतर विपरीत मौजूद है नहीं तो चेष्टा किसके खिलाफ?
___एक आदमी चेष्टा से क्रोध से लड़ रहा है और कहता है, शांत रहना चाहिए, शांत रहना ही धर्म है। ये तुम्हें बातें जंचती भी हैं कि शांत रहना धर्म है। शांत रहना धर्म नहीं है। शांत रहने की चेष्टा तो केवल क्रोध को छिपाने का उपाय है। शांत हूं ऐसा जान लेना धर्म है शांत रहने की चेष्टा