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पर बैठकर परमात्मा होने का ही थोड़ा मजा लेते हैं कि थोड़ी शक्ति हाथ आई! धन पास होता है तो परमात्मा का थोड़ा सा मजा लेते हैं कि हम दीन-दरिद्र नहीं। ज्ञान होता है तो परमात्मा का थोड़ा सा मजा लेते हैं कि हम अज्ञानी नहीं।
बे-गोता कैसे मिलता हमें गौहरे-मुराद वह परमात्मा ही गौहरे-मुराद है। उसको हमने बहुत-बहुत लहरों में खोजा, कभी पाया नहीं। हाथ में झाग लगता है। लहर को पकड़ते हैं, झाग मुट्ठी में रह जाता है। मगर फिर दूसरी लहर पर उठा झाग हमें बुलाने लगता है। झाग बड़ा सुंदर लगता है कभी! सूरज की सुबह की किरणों में झाग बड़ा रंगीन लगता है। मणिमुक्ताएं हार जाएं, ऐसी शुभ्रता, ऐसे रंग, ऐसे इंद्रधनुष झाग में दिखाई पड़ सकते हैं। दूर उठती लहर के ऊपर झाग ऐसे लगता है जैसे हिमालय पर बर्फ जमी हो, पवित्र! झाग ऐसे लगता है जैसे सारे समुद्र का सार नवनीत हो। हाथ बांधो, मुट्ठी बांधो कुछ भी हाथ नहीं आता। बे-गोता कैसे मिलता हमें गौहरे-मुराद
हम तैरते रहे सदा, लहरों के झाग पर। हमने बहुत बार करवटें बदलीं, मगर एक लहर से दूसरी लहर में उलझ गए, मैं तुमसे यह कहना चाहता हूं कि तुममें से बहुत ओक बार संन्यासी हुए फिर भोगी हुए फिर संन्यासी हुए फिर भोगी हुए। ये करवटें तुम बहुत बार बदल चुके हो। यह कुछ नया खेल नहीं। यह खेल बड़ा पुराना है। तुम इसमें बड़े निष्णात हो चुके हो। कई बार मैं देखता हूं कुछ लोग जब पहली दफा संन्यास लेने आते हैं, वे सोचते हैं कि पहली दफा संन्यास लेने आए; उनके भीतर मैं झांकता हूं तो आश्चर्य से भर जाता हूं : यह तो वे कई बार कर चुके हैं, क्या इस बार भी फिर वही पुराना ही खेल जारी रखेंगे, कि इस बार क्रांति होगी? मैं सोचने लगता : यह फिर एक नई लहर होगी या गहराई में उतरना होगा?
भोगियों को देखता हूं तो भोगी संन्यास का सपना देखते मिलते हैं और संन्यासियों से भी मैं मिलता रहा हूं। वर्षों तक घूमता रहा हूं सब तरह के संन्यासियों से मिला हूं। संन्यासियों को भोग के सपने आने शुरू हो जाते हैं। यह बड़ा मजा है। जो लहर, जिस पर तुम सवार होते हो, वह व्यर्थ मालूम होती है; और जो लहर दूर है-वे दूर के ढोल सुहावने-वह बड़ी आकर्षक मालूम होती है!
भोगी कहता है कि त्यागी बड़ा आनंद ले रहा होगा। इसलिए तो भोगी त्यागी के चरण छूने जाता है। कब तुम्हें अक्ल आएगी? कब तुम्हारी आंखें खुलेंगी?
अगर तुमने त्यागी के चरण सिर्फ इसलिए छुए हैं कि तुम सोचते हो कि त्यागी मजा ले रहा है, तो खतरा है। जब तुम भोग से ऊबोगे, तुम त्यागी हो जाओगे। क्योंकि पैर तुम उसी के छूना चाहते हो, जो तुम होना चाहते हो। पैर छूना तो केवल इंगित है। तुम तो खबर दे रहे हो कि अगर हमारा बस चले तो ऐसे होते; जरा मुसीबत है, इसलिए उलझे हैं।
मुल्ला नसरुद्दीन एक दिन बड़ा उदास था। मैंने पूछा, तुम इतने उदास क्यों हो? माना कि तुम्हारी पत्नी मर गई, लेकिन तुम अभी जवान हो, दूसरी शादी हो सकती है। सच तो यह है कि कुछ लोगों ने मेरे पास आकर कहा भी है, किसी तरह मुल्ला को राजी कर दें, उनकी जवान लड़की है।