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उच्चार स्थान में पाणस्स का १ भेद है । और पांचवें उच्चार स्थान में देसावगासिक वगैरह का १ भेद है । ( इस प्रकार पाँचो उच्चार स्थान के कुल २१ भेद हैं । अथवा इन्हें २१ उच्चार स्थान भी कहा जाता है | ) ||६||
नमु पोरिसि सड्डा, पुरिम वढ्ढ अंगुट्टमाई अड तेर; निवि विगईं बिल तिय तिय, दु ईगासण एगठाणाई ॥७॥
नवकारसी- पोरिसि- सार्धपोरिसि-पुरिमड्ड-अवड्ढ और अंगुट्ठ सहियं आदि आठ ये तेरह प्रकार ( के उच्चार भेद ) प्रथम स्थान में है । तथा नीवि, विगइ और आयंबिल तीन दूसरे स्थान में हैं । तथा (दु (आसण) = इग) बिआसन एकाशन, और एकलठाण ये ३ प्रकार तीसरे स्थान में है । (और चौथे तथा पांचवे स्थानमें तो पूर्व कथित पाणस्सका व देशावगासिकका ही एक एक प्रकार है, इस प्रकार अध्याहार से समझना ||७|| )
पढमंमि चउत्थाई, तेरस बीयंमि तईय पाणस्स; देसवगासं तुरिए, चरिमे जह संभवं नेयं ॥ ८ ॥
उपवास के प्रथम उच्चारस्थान में चतुर्भक्त से लेकर चोंतीसभक्त तक का पच्चक्खाण, दूसरे स्थानमें ( नमुक्कारसहियं आदि) १३ पच्चक्खाण, तीसरे उच्चार स्थान में पाणस्स का, चौथे उच्चारस्थान में देसावगासिक का, और पाँचवे उच्चार
श्री पच्चक्खाण भाष्य
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