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तथा जिन दो उच्चार विधिमें उग्गए सूरे पाठ आता है। उन पच्चक्खाणों की सूर्योदय से पूर्व धारणा करने पर शुद्ध गिने जाते है । और जिसमें सूरे उग्गए पाठ आता है, उन पच्चक्खाणोंको सूर्योदय के बादमें भी धारा जा सकता है । इस प्रकार उग्गए सूरे और सूरे उग्गए ये दोनों पाठो में सूर्योदय से लेकर के ये अर्थ यद्यपि समान है, फिर भी क्रियाविधि भिन्न होने से इन दोनों पाठों का भेद सार्थक (कारणयुक्त) है ॥४॥ भणइ गुरु सीसो पुण, पच्चक्खामि त्ति एव वोसिरइ, उवओगित्थ पमाणं, न पमाणं वंजणच्छलणा ॥ ५ ॥
(पच्चक्खाण का पाठ उच्चरते समय) गुरु जब पच्चक्खाइ बोले तब शिष्य पच्चक्खामि इस प्रकार बोले ।
और इसी प्रकार जब गुरु वोसिरइ बोले तब शिष्य वोसिरामि कहे । तथा पच्चक्खाण लेने में पच्चक्खाण लेने वाले का उपयोग ही (धारा हुआ पच्चक्खाण) प्रमाण है । लेकिन अक्षर की स्खलना भूल प्रमाण नही है। ॥५॥ पढमे ठाणे तेरस, बीए तिन्नि उ तिगाई तईअंमि; पाणस्स चउत्थंमि, देसवगासाई पंचमए ॥ ६ ॥
प्रथम उच्चार स्थान में १३ भेद है। दूसरे उच्चार स्थान में ३ भेद है। तीसरे उच्चार स्थान में ३ भेद है । चौथे
भाष्यत्रयम्