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द्रव्य कृति कर्म व भाव कृति कर्म (अर्थात् पांच द्रव्य और पांच भाव गुरु वंदन) के विषय में अनुक्रम से शीतलाचार्य, क्षुल्लकाचार्य, वीरकशालवी और कृष्ण, दो सेवक व पालक और शाम्बकुमार का ये पांच दृष्टान्त है ॥११॥ पासत्थो ओसन्नो, कुसील संसत्तओ अहाछंदो; दुग- दुग ति दुगणेगविहा, अवंदणिज्जा जिणमयंमि ॥१२॥
पार्श्वस्थ(पाशस्थ) अवसन्न, कुशील, संसक्त और यथाछंद (ये ५ प्रकार के साधु अनुक्रम से) २-२-३-२ अनेक प्रकार के है, और वे जैनदर्शन के विषय में अवंदनीय (वंदन के अयोग्य) कहे गये है || १२ ||
आयरिय उवज्झाए, पवत्ति थेरे तहेव रायणिए; किइकम्म निज्जरट्ठा, कायव्व- मिमेसिं पंचहं ॥ १३ ॥
आचार्य-उपाध्याय- प्रवर्तक- स्थविर तथा रात्निक इन पांचको निर्जरा के लिए वंदन करना ( चाहिये) ॥१३॥ माय पिअ जिभाया, ओमावि तहेव सव्व रायणिए; किइकम्म न कारिज्जा, चउसमणाइ कुणंति पुणो ॥ १४ ॥
दीक्षित माता, दीक्षित पिता, दीक्षितज्येष्ठ भाई (बडाभाई ) विगेरे, तथा वय में छोटे हो फिर भी रत्नाधिक (ज्ञानगुण से, पर्याय से अधिक) इन चार से मुनि वंदन नहीं करवाने चाहिए । लेकिन इन चार के अलावा शेष सभी श्रमण आदि श्री गुरूवंदन भाष्य
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