________________
अवग्रह, (गुरु से दूर खडे रहने की मर्यादा), वंदन का सूत्र के २२६ अक्षर, और उस में २५ गुरु अक्षर ( जोडाक्षर ) का वर्णन, इस प्रकार, ॥८॥
पय अडवन्न छठाणा, छगुरुवयणा आसायण- तित्तीसं; दुविही दुवीस - दारेहिं चउसया बाणउड़ ठाणा ॥ ९ ॥
तथा वंदन का सूत्र में ५८ पद हैं उन्हें दर्शाया जायेगा, वंदन के ६ स्थान (६ अधिकार शिष्य के प्रश्नों के रुपमें) कहेंगे, वंदन के समय गुरु को बोलने योग्य ६ वचन (प्रश्नों के उत्तररूप में) कहेंगे । गुरु की ३३ आशातनाओं का वर्णन, और वंदन की विधि (रात्रि व दिन संबधि) कहेंगे, (इस गाथा में पांच द्धार) इस तरह २२ मुख्य द्वारों के ४९२ स्थान (द्वार के उत्तर भेद ४९२) होते है ॥९॥
वंदर्णय चिईकम्मं, किईकम्मं पूर्वेकम्म विर्णय कम्मं; गुरुवंदण पण नामा, दव्वे भावे दुहाहरणा (दुहोहेण ) ॥१०॥
वंदनकर्म, चितिकर्म, कृतिकर्म, विनयकर्म और पूजाकर्म इस प्रकार गुरुवंदन के पांच नाम है । पुनः प्रत्येक नाम ओघसे (सामान्यतः) द्रव्य से और भावसे, दो प्रकार से दृष्टांत जानना ॥१०॥
सीयलय खुड्डए वीर, कन्ह सेवग दु पालए संबे; पंचेए दिवंता, किइकम्मे दव्व - भावेहिं ॥ ११ ॥
२४
भाष्यत्रयम्