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भरत चक्रवर्ती गृहलिंग सिद्ध हैं । वल्कलचीरी तापस अन्यलिंग सिद्ध है। साधु स्वलिंग सिद्ध है और चन्दनबाला आदि स्त्रीलिंग सिद्ध हैं ॥ ५७ ।। पुंसिद्धा गोयमाइ, गांगेयाइ नपुंसया सिद्धा, । पत्तेय-सयंबुद्धा, भणिया करकंडु-कविलाइ ॥ ५८ ॥
गौतम गणधर आदि पुरुष सिद्ध, गांगेय आदि नुपंसक सिद्ध, करकंडु मुनि प्रत्येक बुद्ध सिद्ध और कपिल आदि स्वयंबुद्ध सिद्ध हैं ।। ५८ ॥ तह बुद्धबोहि गुरुबोहिया य इगसमय एग सिद्धा य, । इग समये वि अणेगा, सिद्धा ते-णेग सिद्धा य ॥ ५९ ॥
तथा गुरु से बोध पाया हुआ, वह बुद्धबोधित सिद्ध है और एक समय में एक ही सिद्ध होने वाला एक सिद्ध है एवं एक समय में अनेक सिद्ध भी होते हैं, वे अनेक सिद्ध कहलाते हैं ॥ ५९ ॥ जइआ य होइ पुच्छा, जिणाणमग्गंमि उत्तर तरया । इङ्कस्स निगोयस्स, अणंतभागो य सिद्धिगओ ॥६० ॥
जिनेश्वर के शासन में जब-जब इस प्रकार का प्रश्न पुछा जाता है, तब तब यही उत्तर होता है कि एक निगोद का अनन्तवां भाग ही मोक्ष में गया हैं ।
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जीवविचार-नवतत्त्व