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ज्ञात कर हर्षित होते थे। वन में से पकड़कर लाए हुए हाथी की तरह गोशाला ने भी वहाँ बंधन और ताड़न आदि की अनेक वेदनाएँ सहन करी। प्रभु वहाँ कर्म की अनेक निर्जरा करके मानो कृतार्थ हुए हो वैसे आर्य देश के सन्मुख चल दिये। अनुक्रम से पूर्णकलश नामक गांव के नजदीक जाने पर लाट देश की भूमि में प्रवेश करने के इच्छुक दो चोरों ने प्रभु को सामने आते हुए देखा। तब ये अपशकुन हुए। ऐसा विचार करके प्रभु को मारने की इच्छा से कर्तिका उठाकर, प्रेत की तरह खड्ग उठाकर प्रभु के सामने दौड़े। इसी समय देवलोक में बैठे इंद्र ने चिंतन किया कि, 'इस समय वीर प्रभु कहाँ होंगे? अवधिज्ञान से देखने पर प्रभु को और उनको मारने में तत्पर हुए उन दोनों चोरों को तत्रस्थ देखा। तत्काल सिंह जैसे हाथी को मार सके ऐसे पंजे से दो हिरण को मारे वैसे इंद्र ने बड़े पर्वत को पराक्रमी वज्र द्वारा उन दोनों चोरों को मार डाला।
(गा. 542 से 565) वहाँ से विहार करके प्रभु भद्दिलपुर में आए। वहाँ चार मास (चौमासी तप) करके पाँचवे चातुर्मास में रहे। तप का पारणा करके वहाँ से विहार करके अनुक्रम से प्रभु कदली समागम नामक गाँव के पास आए। वहाँ के लोग याचकों को अन्न का दान दे रहे थे। वह देखकर गोशाला ने प्रभु से कहा कि, 'स्वामी! यहाँ भोजन करो। सिद्धार्थ ने कहा कि हमारे आज उपवास है। तब तो मैं अकेला ही खाऊंगा। ऐसा कहकर वह वहाँ गया। गोशाला वहाँ जीमने बैठा परंतु पिशाच की तरह वह तृप्त नहीं हुआ। तब गाँव के लोगों ने सर्व अन्न से भरपूर एक थाल उसे अर्पण कर दिया। गोशाला उसमें से सर्व अन्न खा सका नहीं। आकंठ आहार किया। इससे पानी पीने में भी मंद हो गया। तब उन लोगों ने कहा अरे! तू अपने आहार करने की शक्ति को भी जानता नहीं है ? इसलिए तू तो मूर्तिमान् अकाल है। ऐस कहकर वह थाल उसके मस्तक पर फेंका। पश्चात् तृप्ति से पेट को सहलाता सहलाता गोशाला वहाँ से चला गया।
(गा. 566 से 572) वहाँ से विहार करके प्रभु जंबूखंड नामक गांव में आये। प्रभ कायोत्सर्ग में रहे, और गोशाला सदाव्रत का भोजन प्राप्त करने की इच्छा से पूर्ववत् उस गाँव में गया। पूर्व की तरह वहाँ उसे भोजन एवं तिरस्कार दोनों ही मिले। वहाँ से विहार करके प्रभु तुंबाक नाम के गांव के समीप आए। प्रभु बाहर प्रतिमा धारण
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)