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वहाँ से प्रयाण करके प्रभु चोराक गाँव में आए। किसी एकांत स्थल पर प्रतिमा धारण करके रहे। गोशाला ने कहा, “स्वामी! गोचरी जाना है या नहीं? सिद्धार्थ ने कहा, 'आज हमारे उपवास है।' तब क्षुधातुर हुआ गोशाला अकेला ही उत्सुक होकर भिक्षा के लिए गांव में गया। वहाँ किसी स्थान पर गोठ हेतु रसोई तैयार होती उसने देखी। तब भिक्षा का समय हुआ है या नहीं?' उसका निर्णय करने के लिए गोशाला छिप छिप कर देखने लगा। उस समय गाँव में चोर लोगों का बहुत भय था, इसलिए यह छुप छुप कर देख रहा है, अतः यह चोर है अथवा चोर द्वार प्रेषित कोई चर पुरूष है।' ऐसा तर्क करके गांव के लोगों ने गोशाला को पीट डाला। तब गोशाला ने गुस्सा होकर शाप दिया कि 'यदि मेरे धर्म गुरु का तप तेज हो तो इन लोगों का गोष्ठि मंडप जल जाय।' तब भगवंत के भक्त व्यंतरों ने उस मंडप को जला दिया। वहाँ से विहार करके प्रभु कलंबुक नामक गाँव में गये। उस गाँव में मेघ और कालहस्ती सैन्य लेकर चोरों के पीछे जा रहा था। उसने मार्ग में गौशाला सहित वीर प्रभु को आते हुए देखा। तब उसने उन पर चोर की शंकी की। “ऐसे लोगों की ऐसी ही बुद्धि होती है।" कालहस्ती ने पूछा कि 'आप कौन है' परंतु मौनधारी प्रभु कुछ भी बोले नहीं। गोशाला भी मस्करी के कारण बंदर की तरह कुछ बोला नहीं। उसने गोशाला
और प्रभु को बांधकर अपने भाई मेघ को सौंप दिये। वह मेघ सिद्धार्थ राजा का सेवक था और उसने पहले भी प्रभु को देखा था। इसलिए वह प्रभु को पहचान गया, और प्रभु से क्षमा माँग छोड़ दिया। प्रभु ने अवधिज्ञान से जाना कि 'अभी तो मुझे बहुत से कर्मों की निर्जरा करनी है। वे कर्म सहायता बिना मुझ से तुरंत खपाये नहीं जायेंगे क्योंकि सैनिकों के बिना शत्रुओं का विशाल समूह जीता नहीं जा सकता। इस आर्य देश में विहार करने में मुझे वैसी सहायता मिलनी दुर्लभ है। इसलिए अब मैं अनार्य देश में विहार करूं।' ऐसा विचार करके जैसे विशाल घोर सागर में जलजंतु प्रवेश करते हैं, वैसे प्रभु लाट देश में गए, जिस देश में प्राय सभी क्रूर स्वभावी मनुष्य ही रहते हैं। वहाँ प्रभु को देखकर कोई 'मुंड मुंड' ऐसा कहकर मारने लगे। कोई आर्य राजा का गुप्तचर समझ कर पकड़ने लगा, कोई चोर समझकर उनको बांधने लगे। कोई कौतक से प्रभु के ऊपर भौंकते हुए कुत्ते छोड़ने लगे तो अन्य अपनी मर्जी के अनुसार अनेक प्रकार की बिडंबना करने लगे। परंतु जैसे रोगी अति उग्र औषधियाँ से रोग का निग्रह होता जानकर हर्षित होते थे। वैसे प्रभु ऐसे उपसर्गों से कर्म क्षय होते
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
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