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इंद्र ने अपनी सभा में बैठे-बैठे विचार किया कि 'अभी वीरप्रभु कहाँ विचरण कर रहे होंगे? उपयोग देकर देखा' तो प्रभु के साथ उस अच्छंदक की चेष्टा उनको दिखाई दी।' तत्काल उन्होंने निश्चय किया कि प्रभु के मुख से निसृत वाणी असत्य नहीं हो।' ऐसा सोचकर उन्होंने अच्छंदक की दसों अंगुलियाँ वज्र से छेद डाली। तृण को तोड़ते हुए उसे इस स्थिति में दुःखी देखकर सब लोग हंसने लगे। वह मूढ़ बुद्धि वाला अच्छंदक उन्मत्त की भांति वहां से अन्यत्र चला गया। तब सिद्धार्थ ने ग्राम्यजनों को कहा कि 'यह अच्छंदक चोर है।' तब लोगों ने पूछा 'स्वामी उसने किसका, क्या चोरा है ? सिद्धार्थ बोला- इस गांव में 'एक वीर घोष नाम का सेवक है।' यह सुनते ही वीर घोष ने खड़े होकर प्रणाम करके कहा कि क्या आज्ञा है? तब पुनः सिद्धार्थ ने कहा- 'पूर्व में दशपल प्रमाण का एक पात्र तेरे घर में से खोया है ? वीरघोष ने कहा, हाँ। पुनः सिद्धार्थ बोला- वह पात्र इस पाखंडी ने हरण किया है। उसका विश्वास करने के लिए तेरे घर के पीछे पूर्व दिशा में एक सुहांजना (सरगवा-सहजना) का वृक्ष है उसके नीचे एक हाथ जितना खोदकर गाड़ा हुआ है। इसलिए तू जा और वह ले ले। वीरघोष उत्कंठित होकर उसे लेने के लिए घर गया और जिस स्थान पर बताया था, उस इंगित स्थान से वह लेकर वापिस आया। यह देखकर कोलाहल कर रहे ग्रामीणों को पुनः सिद्धार्थ ने कहा- सुनो यहाँ कोई इंद्रशर्मा नामका गृहस्थ है ? लोगों ने 'हां' कहा- इतने में तो इन्द्रशर्मा वहाँ आकर हाजिर हो गया और अंजली जोड़ कर इस प्रकार बोला 'मैं इंद्रशर्मा हूँ, क्या आज्ञा है ? सिद्धार्थ ने कहा, भद्र! पहले तेरा मेंढा (नर भेड़) खोया है? आश्चर्यचकित होकर उसने कहा- हां! सिद्धार्थ बोला उस मेढ़े को यह अच्छंदक भिक्षुक मार कर खा गया है और उसकी अस्थियाँ इसने बोरड़ी के वृक्ष की दक्षिण की ओर गाड़ दी है। लोगों ने कौतुक से वहाँ जाकर उसकी अस्थियाँ देखी और 'वहाँ है' यह आकर उनको कहा। सिद्धार्थ ने कहा - उस पाखंडी का अन्य भी एक दुश्चारित्र है। परंतु अब मैं वह नहीं कहूँगा'। गाँव के लोग आग्रह से बार बार बोले कि 'भगवन! प्रसन्न हो और हमको थोड़ा भी कहो। आपकी कथित अर्ध कथा भी हमको अति रमणीक लगेगी।' सिद्धार्थ बोला कि वह तो मैं कहूँगा ही नहीं। परंतु यदि तुमको कुतूहल हो तो उस अच्छंदक के घर जाकर उसकी स्त्री को पूछो। तब लोग उसके घर गए। इधर उस दिन उसने अपनी स्त्री को मारा था। इससे वह रोषवती होकर नेत्र में अश्रु लाकर इस प्रकार सोच रही थी कि
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)