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के पास
है।' पश्चात् सिद्धार्थ देव ने उसको विशेष रूप से प्रतीति कराने के लिए बहुत कुछ कहा। यह सुनकर गोपाल को बहुत आश्चर्य हुआ । उसने गांव में जाकर कहा कि ‘अहो! अपने गांव के बाहर वन में एक त्रिकालवेत्ता देवार्य आए हुए हैं। उन्होंने मुझ से प्रतिति हो ऐसा बहुत कुछ बताया है । यह सुनकर गांव के सभी लोग कौतुक से पुष्प अक्षत आदि पूजा का सामान लेकर प्रभु आए। सिद्धार्थ प्रभु के शरीर में संक्रमण करके बोला कि 'तुम सब क्या मेरा अतिशय देखने के लिए आए हो ? गांव के लोगों ने 'हाँ' कहा। तब सिद्धार्थ ने पूर्व में उन्होंने जो जो देखा था, किया था, सुना था, कहा था, वह सब यथातथ्य कह सुनाया । सिद्धार्थ ने उनको भविष्य के विषय में भी कहा, यह सुनकर लोगों ने बहुत महिमा से प्रभु की पूजा एवं वंदना की। इस प्रकार प्रतिदिन लोग आ आकर पड़ने लगे। इससे सिद्धार्थ के मन में बहुत ही प्रीति उत्पन्न हो गई ।
(गा. 165 से 180)
एक बार गांव के लोगों ने वहाँ आकर कहा, स्वामी! हमारे गांव में एक अच्छंदक नामका ज्योतिष निवास करता है । वह भी आपकी तरह सब जानता है। सिद्धार्थ बोला कि 'वह पाखंडी तो कुछ भी जानता नहीं है । वह तो तुम जैसे भोले प्राणियों का ठग कर अपनी उदरपूर्ति करता है । उन लोगों ने आकर अच्छंदक को कहा - "अरे! तू तो कुछ भी जानता नहीं है । सर्वभूत, भविष्य और वर्तमान तो नगर के बाहर स्थित रहे हुए देवार्य जानते है । यह सुनकर अपनी प्रतिष्ठा का नाश होने के भय से वह अच्छंदक बोला- अरे लोगों ! वास्तव में परमार्थ को नहीं जानने वाले ऐसे व्यक्ति तुम्हारे समक्ष उस जानकारी में रहते हैं। परंतु यदि वह मेरे समक्ष आवे तब मैं जानूं कि वह वास्तव में ज्ञाता है। चलो, आज अभी ही तुम सबके देखते हुए मैं उसकी अज्ञता को खुली कर दूंगा । ऐसा कहकर वह अच्छंदक क्रोधित होकर गांव के कौतुकी लोगों के साथ जहां प्रभु कायोत्सर्ग करके रहे हुए थे, वहाँ शीघ्र ही आया । तब हाथ की अंगुलियों में एक घास का तिनका दोनों छोर से पकड़ कर प्रभु के प्रति बोला कि, कहो यह तिनका मुझसे टूटेगा या नहीं ? उसके मन में ऐसा था कि 'ये देवार्य जो कहेंगे इससे मैं विपरीत करूंगा । इससे इनकी वाणी अनृत (झूठी ) हो जावेगी । सिद्धार्थ प्रभु के शरीर में संक्रमित होकर कहा कि, 'यह तृण टूटेगा नहीं ।' तब अच्छंदक अंगुली सज्ज करके उस तिनके को तोड़ने में तत्पर हुआ । उस समय
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
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