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प्रभु को कुछ कम चार प्रहर तक शूलपाणि ने कदर्थना की, इससे अमित प्रभु को कुछ निद्रा आई। जिसमें उन्होंने इस प्रकार १० स्वप्न देखे
१. प्रथम स्वप्न में वृद्धिंगत होते तालपिशाच का स्वयं ने हनन किया, ऐसा देखा।
२. दूसरे स्वप्न में श्वेत कोकिल ३. तीसरे स्वप्न में विचित्र कोकिल को स्वयं की सेवा करते देखी ४. चौथे स्वप्न में दो सुगन्धित मालाएं देखी। ५ पांचवें स्वप्न में पद्म से परिपूर्ण पद्मसरोवर देखा ७. सातवें में स्वयं को दो भुजाओं से सागर को तिरता हुआ देखा। ८. आठवें में किरणों को प्रसारित करता सूर्यबिम्ब देखा। ९. नवें स्वप्न में अपनी आंतों से लिपटा हुआ मेरु पर्वत देखा। १०. दसवें स्वप्न में स्वयं को मेरुगिरि के शिखर पर आरुढ़ हुआ देखा। इस प्रकार दस स्वप्न देखकर प्रभु जागृत हुए। इतने में मानों उनको वंदन करने को इच्छुक हो ऐसे सूर्योदय हुआ। उस समय गांव के सभी लोग, इंद्रशर्मा पुजारी एवं उत्पल नैमितिक वहाँ आया। प्रभु को अक्षत अंगवाले एवं पूजा की हुई देखकर सभी हर्षित हुए। पश्चात् आश्चर्य चकित होकर पुष्पादिक द्वारा प्रभु की पूजा करके रण में विजय प्राप्त की हो उस भांति उन्होंने जोर से सिंहनाद किया। तब वे परस्पर कहने लगे 'अपन ने भाग्ययोग से ही इन देवार्य प्रभु को दुष्ट व्यंतर के उपद्रव से कुशलतापूर्वक देखा है।'
(गा. 147 से 154) उत्पल नैमित्तिक ने प्रभु को पहचान कर वंदना की और लघशिष्य की तरह वह प्रभु के चरणकमल के पास बैठा। भगवंत के कायोत्सर्ग पारने के पश्चात् उत्पल ने प्रभु को पुनः वंदना की एवं अपने ज्ञान के सामर्थ्य से प्रभु को आए दसों स्वप्नों को ज्ञातकर वह बोला कि 'हे स्वामी! आपने रात्रि के अंत में जो दस स्वप्न देखें हैं, उनका फल आप स्वयं तो जानते ही हो, तथापि मैं भक्तिवशात् होकर कहता हूँ- हे नाथ! प्रथम स्वप्न में जो तालपिशाच का हनन किया, इससे आप मोह को हनन करोगे। दूसरे स्वप्न में शुक्ल कोकिल देखी इससे आप शुक्ल ध्यान पर आरुढ़ होंगे। तीसरे स्वप्न में जो विचित्र कोकिल देखा इससे आप आर्य द्वादशांगी को प्रकट करेंगे। पांचवें स्वप्न में जो गोवर्ग देखा, इससे आप चतुर्विध संघ की स्थापना करेंगे। छठे स्वप्न में जो पद्म सरोवर देखा, इससे देवों का समूह आपका सेवकभूत होगा। सातवें स्वप्न में जो आप
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)