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राजगृही नगरी के अंतराल में अठारह योजन के प्रमाण की एक भयंकर अटवी है। उसमें कडदास के नाम से प्रसिद्ध बलभद्र आदि पाँच सौ चोर रहते थे। वे प्रतिबोध के योग्य है ऐसा कपिल मुनि को ज्ञात हुआ। इसलिए उन चोरों में से एक चोर वानर की भांति एक वृक्ष पर चढ़ा हुआ था। उसने दूर से ही उन कपिलमुनि को आते हुए देखा। तो उस चोर ने सोचा कि 'अपना पराभव करने के लिए कोई आ रहा है।'' उसने यह हकीकत सेनापति को ज्ञात कराई। आज यह एक खिलौना आया है'' ऐसा बोलता हुआ सेनापति मुनि के पास आया। उस अज्ञ सेनापति ने आज्ञा दी कि, 'हे श्रमण! नृत्य करो।' कपिल मुनि बोले कि - 'कोई वाद्य बजाने वाला वादक नही है, तो वाद्य के बिना नृत्य किस प्रकार हो? कारण बिना कार्य होता नहीं है। पश्चात् पांच सौ चोर हाथ से तालियाँ देने लगे, तो कपिल मुनि नाचने लगे। श्रवण से सुख हो इस प्रकार उच्चस्वर से गाने लगे। “ इस नाशवंत संसार में पृथ्वी पर अनेक प्रकार के दुःख हैं, इसलिए ऐसा कार्य करूंगा कि जिससे मैं कभी भी दुर्गति को प्राप्त नहीं करूँगा। इस अर्थ के पांच सौ ध्रुवपद कपिलमुनि ने गाकर सुनाए जो कि सर्व प्राकृत भाषा में श्रवण योग्य थे। महर्षि कपिल द्वारा गाए इन ध्रुवपदों के भिन्न भिन्न पदों से भिन्न भिन्न चोर प्रतिबोध को प्राप्त हुए। अंत में पांच सौ ही चोर प्रतिबुद्ध हो गए। तत्पश्चात् कपिल महामुनि ने उन पाँच सौ चोरों को दीक्षित किया। यह सर्व वृत्तान्त उनके ज्ञानचक्षु से दृष्टिगत ही था। ये बह्मर्षि कपिल राजगृही नगरी में जाकर देवाधिदेव श्री महावीर प्रभु की आज्ञा लेकर अभी आपकी नगरी को पवित्र कर रहे हैं। ये श्वेताम्बरियों में शिरोमणि हैं। वे यदि आपके पुण्योदय से इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा करें तो अत्युत्तम होगा।'
___ (गा. 520 से 533) तब उज्जयिनी के राजा ने कपिल केवली के पास जाकर उनसे प्रार्थना की। तब उन्होंने मंत्रित पवित्र वासक्षेप से उस प्रतिमा की प्रतिष्ठा की। राजा ने दोनों हस्तों से उस प्रतिमा की पूजन अर्चन करके जैसे लुब्ध नर धन को रखता है
वैसे उस प्रतिमा को अपने हृदय में स्थापित की। पश्चात अनिलवेग हाथी के स्कंध पर प्रतिमा रखकर स्वयं एक सैनिक के समान उसके पीछे बैठकर उसको धारण करके, दिव्य विमान से भी अत्यधिक वेग वाले गजेन्द्र द्वारा वीतभय नगर में आकर उस प्रतिमा को उस दासी को अर्पण की। दासी ने उस प्रतिमा
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)