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को ही नाचते हुए देखा। इस अनिष्ट को देखने पर राजा शीघ्र ही क्षुब्ध हो गया। इससे मानो निद्रा आ गई हो वैसे उसके कर में से वीणा बजनाबंद हो गया । अकस्मात् वीणा बंद हो जाने से तांडव नृत्य का छेद हो जाने से रानी कुपित होकर बोली 'अरे स्वामिन्! आपने वाद्य बजाना क्यों बंद कर दिया ? क्या मैं तालभ्रष्ट हो गई थी ? उसने बार बार वैसा करने का कारण पूछा। अंत में राजा ने यथा तथ्य कह सुनाया । "स्त्री का आग्रह बलवान् है ।" यह सुनकर रानी बोली- हे प्रिय ! ऐसे दुर्निमित्त से मेरा आयुष्य अल्प है, ऐसा निश्चय होता है । जन्म से ही अर्हत् धर्म का पालन करने वाली मुझे मृत्यु का किंचित् भी भय नहीं है। बल्कि उस दुर्निमित्त का दर्शन तो मेरे लिए आनंद का हेतु है, क्योंकि वह मुझे सर्वविरति अंगीकार करने का समय सूचित करता है। ऐसा कहकर हृदय में चिंतन करती हुई प्रभावती अंतःपुर में गई परंतु अर्हद्धर्म के वचनों से जिनके कान आविद्ध है, ऐसा राजा मन ही मन कुछ खेदित हुआ ।
(गा. 402 से 414 )
एक बार प्रभावती ने शौच स्नान करके देवार्चन के योग्य वस्त्रों को दासी के पास से मंगाये। दासी वस्त्र लाई, भावी अनिष्ट के कारण रानी को वे वस्त्र रक्त दृष्टिगत हुए। ये वस्त्र पूजा के समय अनुचित है, ऐसा सोचकर रानी दासी पर कुपित हुई। इसलिए उसने शीघ्र ही दासी पर प्रहार किया । मात्र प्रहार से ही दासी की मृत्यु हो गई। 'मृत्यु की गति विषम है।' पश्चात् तुरंत ही रानी को वे वस्त्र उज्जवल दिखाई दिये ।
इससे वह चिंतन करने लगी कि, 'मुझे धिक्कार है।' मैंने मेरे प्रथम व्रत को खंडित किया। दूसरा पंचेन्द्रिय का मैंने विघात किया, वह भी नरक का कारण है। तो स्त्री हत्या की तो बात ही क्या करनी ? इसलिए अब तो मुझे चारित्र अंगीकार करना ही श्रेयस्कर है। रानी ने राजा को उस दुनिर्मित को विषय में ज्ञात कराया। स्वयं के द्वारा हुई स्त्री हत्या का महापाप एवं स्वयं को हुआ वैराग्य भी अंजली बद्ध होकर कहा' एवं प्रार्थना की कि, " हे स्वामिन्! वास्तव में मैं अल्पायुषी हूँ।” अतः सर्वविरति के लिए मुझे अभी ही अनुमति प्रदान करो । प्रथम आपने मुझे मस्तक रहित अवलोकन किया था और अभी मैंने वस्त्र के रंग में परिवर्तन देखा। ये दो दुर्निमित्त देखे । इन दोनों ही दुनिर्मितों से मुझे मेरी आयु अल्प निश्चित होती है । इसलिए अब आप मुझे योग्य समय में दीक्षा ग्रहण करने में विघ्न मत कीजिए।" इस प्रकार जब उसने अत्याग्रहपूर्वक कहा, तब
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित ( दशम पर्व )
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