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परंतु वह संपुट खुल नहीं पाया । इतने में राजा के भोजन का समय का अतिक्रम हो जाने से रानी प्रभावती ने राजा को बुलाने के लिए एक दासी भेजी ।' ‘पतिभक्ता स्त्री का यही आचार होता है।' राजा ने आश्चर्य देखने के लिए आने को प्रभावती को आज्ञा दी। रानी भी आई। रानी ने हकीकत पूछी तो राजा ने सर्व विगत कह सुनाई। यह सुनकर प्रभावती बोली कि - 'हे स्वामिन्! ब्रह्मादिक देव कोई देवाधिदेव नहीं है । देवाधिदेव तो मात्र अरिहंत परमात्मा ही है । इसलिए इसमें संपुट में उन प्रभु की प्रतिमा ही होगी, इसमें किंचित् मात्र भी संशय नहीं है। ब्रह्मादि के नाम स्मरण से उस प्रतिमा के दर्शन नहीं होंगे। परन्तु उन अरिहंत परमात्मा की प्रतिमा को इसमें से निकालकर सर्व लोगों को कौतुक बलाऊंगी। तत्पश्चात् प्रभावती यक्षकर्दम द्वारा संपुट का सिंचन करके पुष्पांजली क्षेपन करके प्रणाम करके उच्च स्वर में बोला कि - राग द्वेष और मोह से रहित, साथ अष्ट प्रातिहार्य से आवृत्त ऐसे देवाधिदेव सर्वज्ञ अर्हन्त परमात्मा मुझे दर्शन दो।' इस प्रकार उच्चारण करते ही वह प्रतिमावाला संपुट जैसे प्रातः काल कमलकोश विकसित होता है, वैसे स्वयमेव खुल गया। एवं उसमें स्थित गोशीर्ष चंदनमयी, देवनिर्मित, अम्लान माल्य को धारण करती, सर्वांग, सम्पूर्ण अरिहंत प्रभु की प्रतिमा सर्व को दिखाई दी । उस समय अर्हन्त प्रभु के शासन की अत्यन्त प्रभावना हुई।
(गा. 379 से 401 )
प्रभावती प्रभु प्रतिमा को नमन करके इस प्रकार स्तुति करने लगी'सौम्य दर्शन वाले, सर्वज्ञ अपुनर्भव, जगद्गुरु भव्यजाननंददायक एवं विश्वचिंतामणि रूप हे अर्हन्त प्रभु आपकी जय हो । पश्चात् प्रभावती ने उस जहाजमालिक का बंधु के समान सत्कार करके उस प्रतिमा को उत्सवपूर्वक अपने अंतःपुर में ले गई। और एक सुंदर चैत्य बनवा कर उसमें उस प्रतिमा को विराजमान की। वह त्रिकाल गानतान पूर्वक उस प्रतिमा की पूजा करने लगी। एक बार प्रभावती ने अपने पतिदेव के साथ हर्ष से पूजा करके निर्दोष संगीत का प्रारंभ किया। उस समय राजा व्यंजन, धातु, स्वर और राग स्पष्ट करता हुआ श्रवण करने योग्य वाणी को बजाने लगा । और प्रभावती अंगहार को स्पष्ट करती हुई साथ ही सर्व अंग के अभिनय को दर्शाती हुई ताडंवपूर्वक प्रीति से नृत्य करने लगी। इस प्रकार की प्रवृत्ति करते समय एक बार राजा ने क्षणमात्र के लिए प्रभावती का मस्तक को देखा ही नहीं एवं रणभूमि में हो वैसे मात्र घड़
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित ( दशम पर्व)
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