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पूर्ण होने के पश्चात् वह राजगृह नगर की ओर जाने की तैयारी करने लगा। तब प्रभु ने उसे कहा कि, 'तू राजगृही में जाकर नाग नामके रथकार की स्त्री सुलसा को हमारी ओर से कोमल वाणी से (धर्मलाभ) कहना कुशलता पूछना।' प्रभु की आज्ञा को स्वीकार करके अंबड आकाशमार्ग से उड़कर शीघ्र ही राजगृही आया। पश्चात् सुलसा का पक्षपात किया, इसका क्या कारण? इसलिए मैं उसकी परीक्षा करूँ?
(गा. 272 से 276) __ऐसा विचार करके जिसे वैक्रियलब्धिप्राप्त हुई है, ऐसे अंबड़ ने रूप परिवर्तन करके उसके घर में प्रवेश किया एवं भिक्षा मांगी। सुलसा का नियम था कि मेरे हाथ से सुपात्र को ही भिक्षा देना।' इसलिए उसने इस याचक तापस को भिक्षा नहीं दी। (दासी को आज्ञा दी) तब अंबड़ ने राजगृही नगरी के बाहर जाकर पूर्वदिशा के द्वार पर ब्रह्मा का रूप विकुर्वित किया। उसने पद्मासन लगाकर चार बाहू और चार मुख किये। ब्रह्मान तीन अक्षसूत्र और जयमुकुट धारण किया। सावित्री को साथ में रखकर हंस का वाहन खड़ा किया। पश्चात् धर्म का उपदेश देकर मानो साक्षात् ब्रह्मा आए हैं, ऐसे मानने वालों के मन का हरण कर लिया। यह समाचार सुनकर सखियों ने आकर सुलसा को कहा कि, ‘अपने नगर के बाहर साक्षात् ब्रह्मा जी आए हैं, इसलिए चलो देखने चले।' इस प्रकार अनेक बार कहने पर भी मिथ्यादृष्टि के परिचय से भयभीत सुलसा वहाँ नहीं गई।
(गा. 277 से 282) दूसरे दिन वह अंबड़ दक्षिण दिशा के द्वार पर गरुड़ पर बैठकर, शंख, चक्र, गदा और खड्ग को धारण करके साक्षात् विष्णु पधारे हैं। ऐसे समाचार सुलसा ने सुने, तो भी सम्यग्दर्शन में निश्चल सुलसा वहाँ नहीं गई।
(गा. 283 से 284) तीसरे दिन अबंड पश्चिम दिशा के दरवाजे पर शंकर का रूप धारण करके बैठा। अपने नीचे वृषभ का वाहन रखा। ललाट पर चंद्र धारण किया। साथ में पार्वती को रखा गजचर्म के वस्त्र पहने, तीन लोचन किये, शरीर पर भस्म का अंगराग किया भुजा में खट्वांग, त्रिशूल और पिनाक रखे। कपालों की शूद्रमाला गले में धारण की एवं भूतों के विविध गणों की विकुर्वणा की। उस
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
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