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आपके शिष्य बनेंगे और आप हमारे गुरु बनें। गौतम स्वामी बोले कि- 'सर्वज्ञ परमेश्वर महावीर प्रभु हैं, वे ही तुम्हारे गुरु हैं। उन्होंने अत्यन्त आग्रह किया।' तब गौतम गणधर ने उनको दीक्षा दी। देवताओं ने उनको यतिलिंग दिया। पश्चात् विंध्यगिरि में यूथपति के साथ में जैसे अन्य हाथी चलते हैं, वैसे वे गौतम स्वामी के साथ प्रभु के पास जाने को चल दिये। मार्ग में किसी गाँव के आने पर भिक्षा का समय हो जाने से गौतम गणधर ने उन तापस मुनियों को पूछा कि, तुम्हारे लिए पारणा करने के लिए क्या इष्ट वस्तु लाऊं? उन्होंने कहा कि, 'पायसान्न लाईएगा। तब गौतम स्वामी लब्धि की सम्पत्ति से अपना उदर पोषण हो, उतनी खीर एक पात्र में लेकर आए। पश्चात् इंद्रभूति गौतम बोले कि, 'हे महर्षियों! आप सब बैठ जाईये और इस पायसान्न से सब लोग पारणा करें! 'इतनी सी खीर से क्या होगा? ऐसा सभी के मन में प्रश्न उठा, तथापि अपने गुरु की आज्ञा अपने को माननी चाहिये ऐसा सोच कर सभी एक साथ बैठे गये। पश्चात् इंद्रभूति गौतम ने अक्षीणमहानस लब्धि के द्वारा उन सबको आहार करा दिया। इस प्रकार उन सबको विस्मित करके स्वयं आहार करने लगे।
(गा. 241 से 2 50) जब तापस आहार करने बैठे थे, तब ‘अपने पूर्ण भाग्ययोग से श्री वीर परमात्मा जगद्गुरु अपने को धर्मगुरु रूप से प्राप्त हुए हैं, साथ ही पितृ तुल्य ऐसे मुनि बोध कराने वाले मिले, यह भी अत्यन्त दुर्लभ है। इसलिए अपन लोग सर्वथा पुण्यवान् है। इस प्रकार भावना भाते भाते शुष्क सेवालभक्षी पांचसौ तापसों को केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। दत्त आदि पांचसौ तापसों को तो दूर से ही प्रभु के प्रातिहार्य के दर्शन करने ही उज्जवल केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। साथ ही कैडिन्य आदि पांचसौं को भगवन्त के दर्शन दूर से ही होने पर केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। पश्चात् वे वीर प्रभु को वंदन करो।' तब प्रभु बोले कि गौतम! केवली की आशातना मत करो।' गौतम ने शीघ्र ही 'मिच्छामि दुक्कडम्' करके उन सबको खमाया। इस समय गौतम ने पुनः चिंतन किया कि, 'अवश्य ही इस भव में मैं सिद्धि को प्राप्त नहीं कर सकूँगा। कारण कि मैं भारी कर्मी हूँ। इन महात्माओं को धन्य है कि, जो मेरे से दीक्षित होने पर भी क्षणभर में इनको केवलज्ञान हो गया। ऐसी चिंता करते हुए गौतम को श्री वीर प्रभु बोले कि- हे गौतम् तीर्थंकरों का वचन सत्य होता है, या देवताओं का? गौतम ने कहा,
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
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