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पृथ्वी को मंडित करते हुए प्रभु के समीप आने के निकले। उसके सैन्य में आगे चलनेवाले सुमुख और दुर्मुख नाम के दो मिथ्यादृष्टि सेनानी थे। वे परस्पर विविध बातचीत करते हुए चले आ रहे थे। मार्ग में चलते हुए उन्होंने प्रसन्नचंद्र मुनि को एक पैर पर खडे और उर्ध्व बाहु किये हुए आतापना करते हुए देखा। उनको देखते ही सुमुख बोला कि, अहो! ऐसी आतापना करने वाले इस मुनि को स्वर्ग या मोक्ष किंचित मात्र भी दुर्लभ नहीं है।" यह सुनकर कर्म से और नाम से जो दुर्मुख है, वह बोला- अरे! यह तो पोतन नगर का राजा प्रसन्नचंद्र है। बड़े गाड़े में जैसे छोटे बछडे को जोत दे, वैसे अपने बालकुमार के ऊपर अपने विशाल राज्य का बोझा डाल दिया है। यह कैसा धर्मी! इसके मंत्री तो चंपानगरी के राजा दधिवाहन के साथ मिलकर उस राजकुमार को राज्य से भ्रष्ट करेंगे। इसने तो राज्य पर उल्टा अधर्म किया है, साथ ही इसकी पत्नियाँ भी कहीं चली गई है। इससे इस पाखंड दर्शन को धारण करने वाले प्रसन्नचंद्र को तो अपने को देखना भी योग्य नहीं है।" इस प्रकार ध्यान रूपी पर्वत पर वज्र जैसा उसका वचन सुनकर राजर्षि प्रसन्नचंद्र तत्काल इस प्रकार चिंतन करने लगे कि- “अहो! मेरे अकृतज्ञ मंत्रियों को धिक्कार है। मैंने आज तक उनका निरंतर सत्कार किया है, इसके उपरान्त भी उन्होंने अभी मेरे पुत्र के साथ भेद/कपट किया है। इस वक्त मैं वहाँ होता तो उनको कठोर दंड देता।" ऐसे संकल्प विकल्पों से अप्रसन्न हुए प्रसन्नचंद्र राजर्षि अपने ग्रहण किये हुए व्रत को भी भूल गये। पश्चात् अपने को राजा मानकर प्रसन्नचंद्र मन ही मन में उन मंत्रियों के साथ युद्ध करने प्रवृत्त हो गये। इतने में श्रेणिक राजा वहाँ आये
और उन्होंने उनको विनयपूर्वक वंदना की एवं ऐसा विचार करने लगे 'अहो! अभी ये प्रसन्न चंद्र मुनि पूर्ण ध्यानावस्था में हैं।' ऐसा विचार करते हुए श्रेणिक राजा प्रभु महावीर के पास आए एवं प्रभु को नमन करके पूछा- हे स्वामी! मैंने प्रसन्नचंद्र मुनि को पूर्ण ध्यानावस्था में वंदन किया है। इस स्थिति में कदाचित वे मृत्यु को प्राप्त करें तो वे किस गति में जाये ? प्रभु ने फरमाया कि- “सातवीं नरक में' यह सुनकर श्रेणिक राजा विचार करने लगे कि साधु नरकगामी नहीं हो सकते, कदाचित् प्रभु का कथन मुझे ठीक तरह नहीं सुनाई दिया हो। क्षणभर रुककर श्रेणिक ने पुनः पूछा कि, हे भगवन्! प्रसन्न चंद्र मुनि यदि इस समय काल करें तो कहाँ जाय?' भगवंत ने कहा कि 'सर्वार्थ सिद्ध विमान में जायें। श्रेणिक ने पूछा कि, भगवंत आपने क्षणभर के अंतर में दो भिन्न भिन्न
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
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