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पुत्र के साथ मैत्री हो गई । दैवयोग से उस वर्ष उस वृद्धा के पुत्र के नाम की ही चिट्ठी निकली। जो कि यमराज के बहीखाते के पन्ने जैसी थी । यह समाचार सुनकर वृद्धा रुदन करने लगी । यह देख कौशांबी के युवा चित्रकार ने रुदन का कारण पूछा तब वृद्धा ने यक्ष का वृत्तांत और अपने पुत्र पर आई विपत्ति की बात बताई। वह बोला- 'माता! रुदन मत करो, तुम्हारा पुत्र घर पर ही रहे, मैं जाकर ही चित्रकार के भक्षक उस यक्ष का चित्र उतारूंगा । स्थविरा बोली कि'वत्स! तू भी मेरा पुत्र ही है।' वह बोला- 'माता! मेरे होते हुए मेरा भाई स्वस्थ रहे।' तब वह युवा चित्रकार छुट्ट का तप करके स्नान करके, चंदन से शरीर पर विलेपन करके, मुख पर पवित्र आठ पड वाला वस्त्र बांधकर नवीन पींछीयों और सुंदर रंगों से उसने यक्ष की मूर्ति का चित्र बनाया। पश्चात् वह बाल चित्रकार यक्ष को नमन करके बोला कि - 'हे सुरप्रिय देवश्रेष्ठ ! अति चतुर चित्रकार भी आपका चित्र को बनाने में समर्थ नहीं है, तो मैं गरीब मुग्ध बालक तो क्या हूँ? तथापि हे यक्षराज ! मैंने मेरी शक्ति से जो कुछ किया है वह युक्त है या अयुक्त जो है उसे स्वीकारना । यदि कोई भूल हुई हो तो क्षमा करना। क्योंकि आप निग्रह और अनुग्रह दोनों ही करने में समर्थ हो।' हे देव! यदि आप इस गरीब पर प्रसन्न हुए हो तो मैं ऐसा वरदान मांगता हूँ कि अब आप किसी भी चित्रकार को मारना नहीं ।' यक्ष बोला- मैंने तुझे मारा नहीं, तो इससे ही यह सिद्ध हो ही गया है। परंतु हे भद्र ! तेरे स्वार्थ की सिद्धि के लिए भी अन्य कोई वरदान मांग ले । युवाचित्रकार बोला हे देव! आपने इस नगर में से महामारी का निवारण किया, तो इससे ही मैं कृतार्थ हूँ । यक्ष विस्मित होकर बोला'कुमार! परमार्थ के लिए तूने वरदान मांगा, इससे मैं तुझ पर और अधिक विशेषरूप से संतुष्ट हुआ हूँ, इसलिए स्वार्थ के लिए भी तू कुछ वरदान माँग ले ।' चित्रकार बोला- 'हे देव! यदि किसी भी मनुष्य, पशु या अन्य के किसी एक अंश को भी देखूं तो उस अंश के अनुसार उसके सम्पूर्ण स्वरूप को वास्तविक रूप में आलेखन करने की शक्ति मुझे प्राप्त हो ।' यक्ष ने 'तथास्तु' ऐसा कहा । नगर जनों से पूजित वह वहाँ से उस वृद्धा तथा अपने चित्रकार मित्र की इजाजत लेकर शतानीक राजा से आश्रित कौशांबी नगरी में आया।
(गा. 108 से 131 )
एक बार लक्ष्मी से गर्वित कौशांबी में शतानीक राजा सभा में बैठा था । उस वक्त उसने परदेश में आते जाते दूत को पूछा कि 'हे दूत ! जो अन्य राजाओं
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
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