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दिखाई देता है। वर्तमान और भविष्य में क्षणों के व्यूह के योग से निष्पन्न होते कार्य के विषय में किया, ऐसा प्रारंभ में ही किस प्रकार कहा जाय? जो अर्थ
और क्रिया का विधान करते हैं, उसके विषय में ही वस्तुता रही हुई है, तो वह प्रथम काल में उत्पन्न हुए पदार्थ में कभी भी संभवित नहीं है। यदि कार्य को प्रारंभ में ही किया कहा जाय तो फिर शेष रहे क्षण में किए को करने में अवश्य ही अनवस्था दोष लगेगा इससे युक्ति द्वारा यही सिद्ध होता है कि जो कार्य पूर्ण किया गया हो, उसे ही स्फुट रीति से किया कहा जाय। जिसका जन्म ही नहीं हुआ ऐसे पुत्र का नाम कोई रखे नहीं। इसलिए हे मुनियों! मैं कहता हूँ वह प्रत्यक्ष निर्दोष है, उसे अंगीकार करो। प्रभु जो कुछ कहे वह सब ग्रहण नहीं किया जाता, जो युक्तियुक्त हो वही ग्रहण किया जा सकता है। सर्वज्ञता से विख्यात ऐसे अर्हन्त प्रभु मिथ्या बोले ही नहीं, ऐसी धारणा मत रखना। वे भी किसी समय मिथ्या बोले। कारण कि महान् पुरुषों के भी स्खलना हो जाती है।"
(गा. 38 से 56) इस प्रकार विपरीत भाषण करते और क्रोध से मर्यादा को भी छोड़ देते हुए जमालि के प्रति स्थविर मुनियों ने कहा कि “अरे जमालि! तुम ऐसा विपरीत क्यों बोलते हो? रागद्वेष से वर्जित ऐसे अर्हन्त प्रभु कभी भी अन्यथा बोलते ही नहीं हैं। उनकी वाणी में कभी भी प्रत्यक्ष प्रमुख दोष का एक अंश भी होता नहीं है। जो आद्य समय में वस्तु निष्पन्न हुई, न कहा जाय तो समय के अविशेषपन से अन्य समय में भी उसकी उत्पत्ति हुई कैसे कही जा सकती है? अर्थ और क्रिया का साधकतम जो वस्तु का लक्षण है, उस नाम के अन्य उपयोग से व्यभिचार (विपरीत भाव) प्राप्त नहीं होता। जैसे लोक में किसी कार्य को करते समय प्रथम से ही कोई पूछे कि 'क्या करते हो? तब कार्य पूर्ण हुआ न हो तो भी इस प्रकार कहा जाता है कि 'अमुक घट आदि करते हैं। पूर्व काल में करी हुई वस्तु करने में अनवस्था दोष लागू करना युक्त नहीं है, कारण कि उसके पेटा भाग में कार्यान्तर का साधन रहा हुआ है। फिर आपके जैसे छद्मस्थ को युक्त अयुक्त का विवेक कहाँ से हो? अतः आपके वचन युक्ति युक्त कैसे मानकर ग्रहण करें? केवलज्ञान के आलोक से त्रैलोक्य की वस्तुओं के ज्ञाता ऐसे सर्वज्ञ श्री वीरप्रभु का कथन ही हमको प्रमाणभूत है। उनके समक्ष आपकी सर्व युक्ति मिथ्या है। हे जमालि! तुमने जो कहा कि 'महान् पुरुषों को भी स्खलना होती है' यह तुम्हारा ‘वचन मत्त, प्रमत्त, उन्मत्त जैसा है।' जो किया जा
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)