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________________ अभयकुमार इस प्रकार कथा कहकर बोला कि- हे लोगों! विचार करके बोलो कि, इन सर्व में दुष्कर कार्य करने वाला कौन है ? उसका पति, चोर, राक्षस या माली? यह बताओ। तब उन लोगों में जो कि स्त्री के ईर्ष्याल थे, वे बोल उठे कि “सर्व में उसका पति दुष्कर कार्य करने वाला है कि जिसने अपनी अनंगलग्न नवोढा को अन्य पुरुष के पास भेजा।" क्षुधातुर लोग बोल उठे कि “सर्व से दुष्कर कार्य करने वाला राक्षस है, कि जिसने क्षुधातुर होने पर भी प्राप्त हुई उस बाला को छोड़ दी। जारपुरुष बोले कि “सर्व में दुष्कर कार्य करने वाला माली है कि जिसने रात्रि में स्वयमेव आई ऐसी युवा रमणी को भोगी नहीं।" अंत में वह चोर भी वहाँ खड़ा था, वह भी बोला कि ‘सबसे दुष्कर कार्य करने वाला तो वह है कि जो सुवर्ण से भरपूर उस बाला को लूटे बिना छोड़ दिया।" तब अभयकुमार ने उसे चोर जानकर पकड़ लिया और पूछा कि 'तूने आम्रफल की चोरी किस प्रकार की?' चोर ने कहा कि विद्या के बल से।' अभयकुमार ने सर्व वृत्तांत राजा को कहा और चोर को लाकर सौंप दिया। श्रेणिक ने कहा कि 'कोई अन्य चोर हो तो भी उसकी उपेक्षा होती नहीं है तो वह चोर तो शक्तिमान है, इसलिए इसका तो निःसंदेह निग्रह करना है। अभयकुमार ने निष्कपट रूप से विज्ञप्ति की कि हे देव! इसके पास से विद्या प्राप्त करके पीछे जो युक्त हो वह करना। तब मगधपति श्रेणिक राजा ने उस मातंगपति को अपने सम्मुख बैठा कर उसके मुख विद्या पढ़ना प्रारंभ किया। परंतु स्वयं सिंहासन पर बैठ कर विद्या ग्रहण करने से गुरु के अबहुमान के कारण ऊँचे स्थल पर जल की तरह राजा के हृदय में विद्या स्थिर हो सकी नहीं। तब राजगृहपति श्रेणिक ने उस चोर को तिरस्कार पूर्वक कहा कि, तुझ में कुछ कूड कपट है, अतः तेरी कही विद्या मेरे हृदय में संक्रमित होती नहीं है। उस समय अभयकुमार ने कहा कि, हे देव! अभी यह तुम्हारा विद्यागुरु है और जो गुरु का विनय करे उसे ही विद्या स्फुरमान होती है। अन्यथास्फुरती नहीं है। इससे इस मातंगपति को आपके सिंहासन पर बिठाओ और आप अंजली बद्ध होकर उसके सामने पृथ्वी पर बैठो तो विद्या आएगी।' विद्या के अर्थी राजा के इस प्रमाण किया। क्योंकि 'नीचे से भी सही पर उत्तम से विद्या ग्रहण करनी चाहिए।" यह प्रख्यात नीति है। तब राजा ने उसके मुख से उन्नामिनी और अवनामिनी दो विद्या सुनी, तब दर्पण में प्रतिबिंब की तरह त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 161
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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