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मैंने पहले रसोई बनाई वह तो ठर कर विरस हो गई और अब पुनः रसोई तैयार की है, तो अब विलम्ब किसलिए कर रहे हो? नंदीषेण बोले कि 'मेरी प्रतिज्ञा के अनुसार यह दसवां व्यक्ति प्रतिबोध को प्राप्त नहीं हुआ, इसलिए अब मैं दसवां होकर दीक्षा ग्रहण करूंगा।'
(गा. 431 से 437) इस प्रकार स्वयं ने जितना भोग्यकर्म था, वह भोग लिया, ऐसा वेश्या को बताकर वहाँ से निकले गये और प्रभु के पास आकर पुनः दीक्षा ग्रहण कर ली।
(गा. 438) ये महात्मा नंदीषेण मुनि अपने दुष्कृत्य की आलोचना करके श्री वीर जिनेन्द्र के साथ विहार करते हुए एवं तीक्ष्ण व्रत को पालते हुए काल करके देवता हुए।
(गा. 439) दशमपर्व में श्रेणिक को सम्यक्त्व लाभ मेघकुमार,
नंदीषेण प्रव्रज्या वर्णन नाम का षष्टः सर्गः
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
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