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मंत्र का स्मरण करके, चार शरण अंगीकार कर मृत्यु प्राप्त कर देवलोक में गये। श्रेणिक ने संपूर्ण पृथ्वी का भार धारण किया।
. (गा. 133 से 140) इधर नंदा ने अति दुर्वह गर्भ धारण किया। उसे एकदा ऐसा दोहद उत्पन्न हुआ कि 'मैं हाथी पर चढ़कर, विपुल समृद्धि से प्राणियों पर उपकार करके अभय दान दूं।" उसने पिता को इस बात की जानकारी दी। उसका दोहद पूर्ण किया। गर्भ समय परिपूर्ण होने पर सूर्य को पूर्व दिशा प्रसव करती है, उसी प्रकार उसने पुत्ररत्न को जन्म दिया। दोहद का अनुसरण करने वाला मातामह (माता के पिता नाना) ने शुभ दिन में उसका 'अभयकुमार' नामकरण किया। अनुक्रम से बड़ा होने पर, निर्दोष विद्या को पढ़ता हुआ, आठ वर्ष का हो गया। एक बार समानवय के किसी बालक के साथ कलह होने पर कोप से उसका तिरस्कार करते हुए उसने कहा कि, 'तू क्या बोलता है, तेरे पिता का तो ठिकाना नहीं है।' अभयकुमार ने कहा कि, 'मेरे पिता तो भद्र सेठ है।' उसने कहा कि 'वे तो तेरी माता के पिता है।' तब घर आकर अभय ने माता को पूछा कि 'माता! मेरे पिता कौन है ? नंदा ने कहा, 'ये भद्र सेठ तेरे पिता है।' अभय बोला ये भद्र सेठ तो तुम्हारे पिता है, परंतु जो मेरे पिता हों, वे बताओ।' इस प्रकार पुत्र के कहने पर नंदा आनंदरहित होकर बोली कि- वत्स! किसी ने देशांतर से आकर मुझ से विवाह किया और तू गर्भ में था, तब कोई ऊँट वाले पुरुष आकर उनको ले गए। उन्होंने एकान्त में उनको कोई बात कही और फिर वे उनके साथ शीघ्र ही चल दिये। उसके पश्चात् अद्यापि पर्यन्त विदित नहीं हुआ कि वे कहाँ गये और कौन हैं ? अभयकुमार ने कहा- उन्होंने जाते समय आपको कुछ कहा था? नंदा ने कहा, 'ऐसे अक्षर अर्पण किये है' ऐसा कहकर पत्र बताया। वह पढ़कर प्रसन्न होकर वह बोला कि- 'मेरे पिता तो राजगृह नगरी के राजा है, इसलिए चलो अभी ही अपन वहाँ चले। तब भद्रसेठ की आज्ञा लेकर अभयकुमार सामग्री सहित नंदा को लेकर राजगृही नगर में आया। परिवार सहित अपनी माता को बाहर उद्यान में ठहरा कर, स्वयं कुछ लोगों के साथ नगर में गया।
(गा. 141 से 154) इधर श्रेणिक राजा ने एक कम पांचसौ मंत्री एकत्रित किये थे और पाँच सौ पूर्ण करने के लिए कोई उत्कृष्ट पुरुष का शोधन कर रहा था। ऐसे बुद्धिमान
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)