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मनुष्य की परीक्षा के लिए राजा ने एक सूखे कुए में अपनी अंगूठी डालकर लोगों में घोषणा कराई कि 'जो कुए की मुंडेर पर खड़ा होकर इस कुए में से अंगूठी बाहर निकाल सकेगा, वह कुशल बुद्धिमान् पुरुष मेरे पांच सौ मंत्रियों में अग्रणी होगा। लोग तो कहने लगे कि 'हमारे से ऐसा कार्य होना अशक्य है। क्योंकि जो हाथों से आकाश में से तारे खींच सकता हो, वही यह मुद्रिका भी निकाल सकेगा। इतने में तो अभयकुमार हंसता हुआ वहाँ आया एवं बोला कि 'क्या यह अंगूठी नहीं ली जा सकती? इसमें कठिनाई क्या है ? उसे देखकर लोग विचार में पड़ गए 'यह कोई अतिशय बुद्धिमान लगता है।' “समय आने पर पुरुष के मुख का रंग ही उसके पराक्रम का कथन कर देता है।' पश्चात् वे बोले कि 'कुमार! यह अंगूठी ले लो और इसके लिए की हुई अर्ध राज्यलक्ष्मी राजपुत्री और मंत्रियों की मुख्यता ग्रहण करो।'
(गा. 155 से 162) अभयकुमार ने कुएं की मुंडेर पर खड़े होकर तुरंत ही एक आर्द्र गोमय (गीला गोबर) का पिंड उस कुएँ में रही मुद्रिका के उपर डाला और फिर उसके ऊपर जलता हुआ तृण का पूला डाला, जिससे वह गोमय शीघ्र ही शुष्क हो गया। पश्चात् नंदाकुमार (अभयकुमार) ने तुरंत ही पानी की एक नालिका से कुएं में पानी डलवा कर उसे पूर्ण भर दिया और लोगों को विस्मय से भर दिया। वह गोमय पानी पर तिरने लगा, तब उस चतुर बालक ने तुरंत ही हाथ से वह ले लिया और उस पर चिपकी वह अंगूठी निकाल ली। 'बुद्धिमान पुरुषों द्वारा प्रयोजित उपाय के समक्ष क्या दुष्कर है?'
(गा. 163 से 166) रक्षकों ने आकर श्रेणिक को ये समाचार दिये, तो विस्मित होते हुए उन्होंने अभयकुमार को बुलाया एवं पुत्र की तरह उसका आलिंगन किया। "स्वजन कभी देखा हुआ न हो तो भी उस पर दृष्टि पड़ते ही हृदय हर्ष धारण करता है। श्रेणिक राजा ने उसे पूछा कि “तुम कहाँ से आ रहे हो?" अभय ने कहा, 'मैं वेणातट नगर से आ रहा हूँ।' राजा ने पूछा, 'हे भद्रमुख! उस शहर में सुभद्र नामक एक प्रख्यात सेठ रहता है। उसकी नंदा नामकी एक पुत्री है, वह अच्छी तरह है? अभय ने कहाँ, हाँ! वह अच्छी तरह है। राजा ने पूछा, 'उस सेठ की पुत्री सगर्भा थी, उसे क्या अपत्य हुआ? यह सुनकर अभयकुमार ने
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
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