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________________ ने उस सूपड़े से कुल्माष प्रभु के हाथों में वहराये। प्रभु का अभिग्रह सम्पन्न होने से देवगण प्रसन्न होकर वहाँ आये एवं उन्होंने वसुधारा आदि पाँच दिव्य प्रगट किये। शीघ्र ही चंदना की बेड़ियाँ टूट गई, उसके स्थान पर स्वर्णजटित नुपूर बन गए। केशपाश भी पूर्व की भांति सुशोभित हो गया। श्री वीरप्रभु के भक्त देवताओं ने आकर चंदना के सर्व अंगों को वस्त्रालंकारों से सुसज्जित कर दिया। पश्चात् देवतागण पृथ्वी और अंतरीक्ष के उदर को भरे ऐसा उत्कृष्ट नाद करके सूत्रधार के समान हर्षित होकर गीत नृत्यादि करने लगे। दुंदुभि की ध्वनि सुनकर मृगावती और शतानिक राजा तथा सुगुप्त मंत्री और नंदा आदि बड़े परिवार के साथ वहाँ आये। देवपति शक्रेन्द्र भी पूर्ण अभिग्रही प्रभु को वंदन करने के लिए मन में हर्षित होते हुए वेग से वहाँ आये। दधिवाहन राजा का संपुल नामका एक कंचुकी था। उसे जब चंपानगरी को लूटा गया। तब वहाँ से शतानिक राजा पकड़ कर ले आए थे। उसे उसी समय मुक्त किया था। इससे छूटकर वह भी वहाँ आया, तब उसने अपने राजा की पुत्री वसुमती को देखकर उसके पैरों में गिर पड़ा और मुक्त कंठ से जोर जोर से रुदन करने लगा। इससे उस बाला को भी रुदन आ गया। शतानीक राजा ने उससे पूछा कि 'तू क्यों रो रहा है ?' तब वह कंचुकी अश्रुधारा सहित बोला कि हे महाराज! दधिवाहन राजा की धारिणी रानी की ये पुत्री हैं। अहो! उस वैभव से भ्रष्ट होकर माता पिता बिना की यह बाला दासीवत् रह रही है। इसे देखकर मुझे रुदन आ रहा है। शतानीक राजा ने कहा- हे भद्र! यह कुमारी शोक करने योग्य नहीं है, कारण कि इसने तीन जगत् का रक्षण करने में शूरवीर ऐसे वीरप्रभु का अभिग्रह पूर्ण कर प्रतिलाभित किया है। उस समय मृगावती रानी बोली, अरे! धारिणी तो मेरी बहन है, उसकी यह पुत्री है, तो यह मेरी भी पुत्री ही है। पश्चात् छः महिने में पाँच दिन कम तप का पारणा करवाकर धनावह के गृह से बाहर निकले। (गा. 542 से 592) प्रभु के जाने के पश्चात् लोभ की प्रबलता से शतानीक राजा ने धन लेने की इच्छा की, तब सौधर्माधिपति ने राजा शतानीक को कहा कि, हे राजन! आप इस रत्नवृष्टि को लेने की इच्छा कर रहे हो, परंतु इस द्रव्य पर आपका स्वामित्व नहीं है, इसके लिए यह कन्या जिसे दे, वह यह द्रव्य ले सकता है। राजा ने चंदना से पूछा कि 'चंदना! यह द्रव्य कौन लेवे?' चंदना बोली कि 'यह धनावह सेठ ग्रहण करे, 108 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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