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________________ आपने अंशमात्र व्याधि की तरह प्रमाद से उसकी उपेक्षा की जिससे वह राजा अभी शक्ति में बढ जाने से कष्ट साध्य हो गया है। परंतु हे महाबाहो। आपने उस पर रोष से कठोर मन किया है तो वह पर्वत पर से पड़े हुए घड़े की तरह अवश्य विदीर्ण ही हो गया है, यह संशय रहित हमारा मानना है। इसलिए प्रथम तो दूत भेजकर उसे जानकारी दें तब प्राणिपात में या दंड में उसकी जो इच्छा होगी वह जान जायेंगे। इस प्रकार सामंतों के वचन से नलराजा ने दृढ़ता में महागिरी ऐसे एक दूत को समझाकर एक बड़े सैन्य के साथ वहाँ भेजा। गरुड़ जैसा दुर्धर वह दूत त्वरित गति से वहाँ पहुँचा और अपने स्वामी को न लजावे वैसे उसने कदंब राजा को कहा कि हे राजेंद्र। शत्रुरूप वन में दावानल जैसे मेरे स्वामी नलराजा की सेवा करो, और वृद्धि को प्राप्त करो। आपकी कुलदेवी से अधिष्ठित हुए की तरह मैं तुमको हितवचन कहता हूँ कि आप नलराजा की सेवा करो, विचारो जरा भी घबराओ नहीं। दूत के ऐसे वचन सुनकर चंद्रकला को राहू के जैसे दंताग्र से होंठ को डंसता कदंब अपने को भूलकर स्वंय की स्थिति को देखे बिना ही इस प्रकार बोला अरे दूत! क्या नलराजा मूर्ख है, उन्मत्त है या वात से सुप्त हैं कि जो शत्रु रूपी मृत्यु में वराह जैसा मुझे बिल्कुल नहीं जानता? अरे दूत। क्या तेरे राज्य में कोई कुलंमत्री भी नहीं है कि जो इस प्रकार मेरा तिरस्कार करते हुए खड्ग को रोका भी नहीं, हे दूत! तू शीघ्र ही जा, यदि तेरा स्वामी राज्य से उदासीन हो गया हो तो ठीक, अन्यथा वो युद्ध करने को तैयार हो जाय, मैं भी उसके रण का अतिथि होने को तैयार हूँ। दूत वहाँ से निकल कर नलराजा के पास आकर उसके अहंकारी वचन बलवान नलराजा को कह सुनाये। महत अंहकार के पर्वतरूप तक्षशिला के राजा कदंब पर नलराजा ने विशांत आडंबर से चढाई की। पराक्रमी हाथियों द्वारा जैसे दूसरी किलेवाली तक्षशिला नगरी हो, उसको अपनी सेना से घेर लिया। यह देखकर कदंब राजा भी तैयार होकर बड़े सैन्य के साथ बाहर निकला। केशरीसिंह गुफाद्वार के पास किसी का गमनागमन सहन नहीं कर सकता। (गा. 408 से 422) क्रोध से अरूण नेत्र करते प्रचंड तेजवाले योद्धा बाणाबाणी युद्ध से आकाश में मंडप बनाते परस्पर युद्ध करने लगे। यह देखकर नल ने कदंब राजा को कहा अरे! इन हाथी आदि को मारने की क्या जरूरत है? हम दोनों परस्पर 102 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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