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पांचमा कर्मग्रन्थनी विषयसूचि
गाथा
विषय
मंगलाचरण अने ग्रन्थनो विषय [ध्रुवबन्धि-अध्रु वबन्धि, ध्रवोदय-अध्र वोदयि, ध्र वसत्ताक-अध्र वसत्ताक, घाति-अवाति, पुण्य-पाप, परावर्त्तमान-अपरावर्त्तमान, चार प्रकारना विपाक, चार प्रकारना बन्ध, बन्धना स्वरूपने स्पष्ट करतु
मोदकनु दृष्टान्त अने चार प्रकारना बन्धस्वामित्वनु स्वरूप | २-५ ध्र वबन्धि-अध्र वबन्धी प्रकृतिओ अने तेना साद्यनादि मांगा ५-७ ध्रुवोदयि-अध्र वोदयि प्रकृतिओ अने तेने लगता भांगा ८-१२ ध्रुवसत्ताक-अध्रुवसत्ताक प्रकृतिओ अने गुणस्थानने आश्रयी तेनु वर्णन
८-१३ १३-१४ सर्वघाती, देशघाती अने अघाती प्रकृतिओनु,स्वरूप
१३-१६ १५-१७ पुण्य-पाप प्रकृतिओ
१६-१८ १८-१४ अपरावर्तमान-परावर्तमान प्रकतिओ
१५-१६ १६-२१ क्षेत्रविपाकी जीवविपाकी भवविपाकी अने पुद्गलविपाकी प्रकृतिओ
.१८-२२ २२-२३ मूलकर्मप्रकृतिओने आश्रयी भूयस्कार अल्पतर अवस्थित अने अवक्तव्य ए चार प्रकारना प्रकृतिबन्धनु स्वरूप
२२-२४ २४-२५ उत्तरकर्मप्रकृतिओने आश्रयी भूयस्कारादि चार प्रकारना प्रकृतिबन्धनु स्वरूप २४-३० २६-१७ मूलकर्मप्रकृतिओने आश्रयी जघन्य-उत्कृष्ट स्थितिबन्धन स्वरूप, कर्मनिषेकनु स्वरूप ३०-३२ २८-३४ उत्तरकर्मप्रकृतिओने आश्रयी उत्कृष्ट स्थितिबन्धनु स्वरूप
३२-३८ ३५-३६ उत्तरकर्मप्रकृतिओने आश्रयी जघन्य स्थितिबन्ध- वर्णन
३८-४२ ३७-३८ एकेन्द्रियादि जीवोने विषे तेमने योग्य प्रकृतिओने आश्रयी उत्कृष्टजघन्य स्थितिबन्धनु स्वरूप
४२-४३ ३९ उत्तरकर्मप्रकृतिओना जघन्य अबाधाकालनु वर्णन
४३.४४ ४०-४१ क्षुल्लकभवन विस्तृत स्वरूप
४४-४५ ४२-४४ उत्तरकर्मप्रकृतिओना उत्कृष्ट स्थितिबन्धना स्वामीओ
४५.४९ ४४-४५ उत्तमप्रकृतिओना जघन्य स्थितिबन्धना स्वामीओ
४६-५१ ४६-४७ स्थितिबन्धना उत्कृष्ट-अनुत्कृष्ट आदि अने साद्यनादि भांगाओ
५१-५३ ४८ गुणस्थानकोमां स्थितिबंध
५३-५५ ४६-५१ एकेन्द्रियादि जीवोने आश्रयी स्थितिबन्धनु अल्पबहुत्व अने तेने समजवा माटेनां यंत्रो ५५-५८ ५२ कर्मस्थितिना शुभ-अशुभपणानु कथन
५८-६० ५३-५४ सूक्ष्मनिगोदादिजीवोने आश्रयी योगस्थान अने स्थितिस्थानोना अल्पबहुत्वनुवर्णन अने तेने लगता यंत्रो
६०-६५ ५५ अपर्याप्र जीवोने आश्रयी योगस्थानोनी वृद्धि अने स्थितिबन्धने
आश्रयी सर्व कर्मोना अध्यवसायस्थानोनु निरूपण