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अछे, प्रियनें जिम एक जीव । किसे काजे आव्यो अछे, आदर करो सदीव ॥१९।। सरिजकेत आदर करे, तंबोलासन पान । खादिम सादिम अति घणां, मंडे बहु सनमान ॥२०॥
( चोपाइ:- ) . ऋषभद्रत्त कहे राजा सुणो, वेला न खमे कारण गणो। में दीठी अंजनासुंदरी, गयो किलेश थयो सुख फरी ॥२१॥ तुम्हे सामग्री मांडी घणी, भगति करेवा भोजन तणी । थाए निलंब मुज मन आकुलो, हुं तो छ अति उतावलो ॥२२॥ आवी हुती रावणनी आण, तुड़े चडवानी सपराण । पवनंजय संग्रामें चड्यो, जई वरुण राजास्युं भिड्यो ॥२३॥ जुद्धे करतां जय पाम्यो जिसें, मान महुत बहु पाम्यो ति। जीपी कुंवर आव्यो घरे, मिल्या सगा सोदर मुदभरे ॥२४॥
गाहाःपुण्यवंत नर जिहां गछइ, तिहां तिहां सुंदर रुयडउं अछइ । पूण्य हीन नर जाउ जिहां भावइ, तिहां पुण गयओ निफल आवइ ॥ २५॥
( दूहाः ) सीह न जोवे चंद बल, नवि जोवे धन रिद्ध । एकल्लओ सहसां भिडे, जिहां सासह तिहां सिद्ध ॥२६।। सींहणी तेहवा पुत जणे, जे छप्परि मंडाल। दूध विणासण का पुरिस, बहुआ जणे सीआल ॥२७॥