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गृह प्रवेस वरकन्या कीया, दांनघणा जाचिककुं दीया ।देखी बदन कुलवंती वहुं, हरख्या जन परिजन मिल सहु ||३०|| दुलहनी पावघरे धरजिसे, ऋद्धि सिद्धि घरआई ति से । मणिमाणिक मोती भंडार, सोनारूपानो नही पार ||३१|| हाथी घोड़ानें पालखी, वहल सुखासणनें नालखी । दासीदास सहेली लोक, दिन दिन बाधे थकाथोक ||३२|| पुन्यवंतने पग परवेस, कीरति बाधी देसोदेस । वाधे पुत्र पौत्र परिवार, वाधी लछमी बहुतभंडार ||३३|| नरदेही घरआई वहु प्रस्तुक्ष लछमी भाखे सहु । माणिकदेवी दीनो नांम, अदभुत रूपवंत अभिरांम ||३४|| पूर्वन्यतणे परमाण, सुख भोगवे सुरेंद्रसमांण । नाटक गीत संगीतरसाल, नाचै नाटक अति सुकुमाल ||३५|| स्वर्गसमाणा सुखभोगवे, धर्म कर्म दोऊं जोगवे । प्रतिपतिती दोऊं अधिकसनेह, ज्युं चातिक सारदऋतुमेह || ३६ || देस बंगाळे उत्तम देस, आए माणिकचंद नरेस । नांम नगर मक्सूद्रावाद, करि कोठी कीनो आवाद ||३७|| राजा परजा अरु उमराव, फोजदार सुबाऽरु नबाव । सहुकोई माने हुकम प्रमाण, दिल्लीपति दे अतिसनमांन ||३८|| बादशाह श्रीफरुकसाह, सेठ पद्स्थ कीयो उच्छाह । माणिकचंद शेटभए नांम, फिरी दुहाई ठमोठा ||३९|| देस बंगाला केरे धनी, दिनदिन संतति संपति
नी। जाके पुत्र सुरेंद्रसमान, प्रगटं फतेचंद सुज्ञान ॥ ४० ॥ दिल्लि जाय दिलिपती भेट, नांम किताब भयो जगसेठ । जगत सेठ जगपति अवतार, कुलमंडण थंभन परिवार ॥४१॥