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अनिष्ट, असार, उच्छिष्ट, छांडवा योग्य आहार आपे ते जीव आभव परभवमां भमतां कृतदुष्टकर्मना प्रतापे दुःखोने ओगवतां दुःखोनो अंत छेह तप धर्म विना पामे नही, रोहिणी नो जीव दुर्गधानी माफक, ए स्वरूपने वर्णवता रासकारे आ ग्रन्थनी उत्पत्तिना मूल श्रीगौतमपृच्छा ग्रन्थ जणावेल छे. विषय कषायमां राचीमाची रहेल जीवात्मा केवा माला कर्म, बांधे छे तेनो चितार आकर्षक भाषामां चोपाई कर्ताए बहु श्रेष्ठ वर्णन करेल छे. आ चोपाईनी कविता सरल रागरागणी देशीमां गुजराती भाषामां कचित् मरुधर भाषामां काव्य बद्ध रूपे रची छे. ते ते भाव लाववामां अदभुत पोतानी कविता शक्ति बतावी आपेल छे, आ कविनी कवितामां प्रसादभाववाही पणुं जल्की रहेल छे. आकविवरे बीजा ग्रन्थो बनाव्या हशे ? पण तेनी प्राप्ति हजु शुधी थइ नथी. एमना करेला स्तवन पदादि जोवामां आवे छे. आ कविवर गुजरात, मारवाड, पूर्व, बंगाल, मेवाड, मालवा विगेरे देशोमां विचर्या छे. शुद्ध मुनिपणुं पालन करेल छे. तेमनी जन्मभूमि वगेरेन ईतीहास उपलब्ध थएल नथी, तेथी लखवामां लाचार छु.
V -जगत शेठाणी श्रीमाणेकदेवी-रासः ' पृष्ट १४८थी पृष्ट १६० पर्यन्त छे. तेना कर्ता-नागपुरीयकृहत्तपागच्छना अग्रगण्य आचार्य महाराज श्रीपार्श्वचंद्रसूरीश्वरजीनी परंपरामा थएल परमपूज्य वाचकशेखर श्रीहर्षचंद्रजी महाराजना लघु गुरुबांधव पंडित प्रवर मुनिवर श्रीनिहालचंद्र कविवर छे. आर