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सूरीश्वर शिष्य वाचकवर श्रीपद्मचंद्रगणिना शिष्यरत्न वाचक श्रीकर्मचन्द्रगणी छे. बीजी प्रतमां लखाण छे के श्रीजयचंद्रसूरीश्वरजी महाराजना शिष्य वाचकवर श्रीप्रमोदचंद्रगणिजीना शिष्य महोपाध्याय श्रीकर्मचंद्रगपनि छे. आबन्ने लेखमां सत्य शुं छे ? ते तपासतां श्रीगौडीपार्श्वजिन स्तवन, गाथा १५नुं छे तेमां पण मुनिराज श्रीपद्मचंद्रगणिशिष्य मुनिकर्मचंद्र ए प्रमाणे बतावेल छे.आ चोपाई-रासनी रचना तेमणे श्रीजालोर नगरमां सोवनगिरि श्रीपार्श्वनाथ जिनेश्वरना प्रसादे-कृपाथी विक्रम संवत् १७३०ना कर्तिक शुदी पंचमी (ज्ञानपंचमी) रविवारना दिवसे श्रीजैनाचार्य पद्मचंद्रसूरीश्वरजीना पटधर ज्ञान तप तेजथी दीपता आचार्यवर्य श्रीमुनिचंद्रसूरीश्वरजीना विजय राज्यमां करेल छे. आ चोपाई--रासनी ढालो २९ छे अने सर्व गाथा ५५५ छे. आ सर्व बीना रासना अंतमां कर्ता पोते लावेला छे. आ रोहिणी चोपाई.-रास ग्रन्थनी रचना " श्रीगौतम पृच्छागन्थ" मां अडतालिश पुन्य पापना फल पूच्छया छे तेमां २९मो पुन्य पाप फलनुं प्रश्न छे-श्री गौतमस्वामी गणधर श्रीवीर परमात्माने बे हाथ जोडीअंजली करी पूच्छयु के हे भगवन् ! श्या कर्मे करीने जीवने खाधुं पीधुं पचे नहि ? जरे नही ? तेना उत्तरमां शासनपति श्रीवीरवर्धमानस्वामि परमात्माए फरमाव्यु के हे गौतम ! श्रमण मुनिमहात्मा अणगारने एवो अहार आपे के जे आहारने कोई खावा पीवा इच्छे नही, वांछे नही, जेनो नाम पण कोइ ले नही-एवो