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( ढाल १४ मा - देशी जीहोजीनी- राग मल्हार. >
जिहो जंबूद्वीप सोहामणो, जिहो भरतक्षेत्रमझार । जिहो गिरनार पर्वत पावती, जिहो नगर अनोपम सार । भविक जन, परतख पेखो पाए । जिहो इह भव प्रभव दुःख सहे, जिहो सिधूमतीनी परे आप || भ० ॥ ७३ ॥ जिहो पृथिवीपाळ राजा तिहां, जिहो द्राता भूकता शुरू । जिहो तेज प्रतापे आकरो, जिहो दुस्मन नाठा दूर ॥ भ० ॥ प० ॥ ७४ ॥ जिहो सुखे राजपाले तिहां, जिहो जिनधरमी जशवंत । जिहो अरिहंत साधु दया भली, जिहोणे तत्त्व जाणंत ॥ भ० ॥ ७५ ॥ जिहो सिद्धमति राणी तेहने, जिहो जीवनप्राण समान । जिहो सुखे रहेतां एकणसमे, जिहाँ चिंते मन राजान ॥ भ० || ७६ ॥ जिहो आज अपूरवछे सही, जिहो परिमल वनही वसंत । जिहो वनक्रीडा जो कीजिये, जिहो तो तनु मन विकसंत ॥ भ० ॥ ७७ ॥ जिहो राजाराणी हरखशुं, जिहो ये गय रथ परिवार । जिहो साथे सामग्री सहू, जिहो क्रीडा विविधप्रकार ॥ भ० ॥ ७८ ॥ जिहो तिण समे गुणसामर युती, जिहो जाय नगरमझार । जिहो राजां देखी रंगभुं, जिहो भावना भावे सार ॥ भ० ॥ ७९ ॥ जिहो धन्य दीह मुज आजनो, जिहो जो पडिलाभुं एह । जिहो इहांथी इम किम जाइजे, जिहो राणी मुकुं गेह ॥ भ० ॥ ८० ॥ जिहो प्राण पीयारी पदमिणी, जिहो सांभळी वयण विशेष । जिहो महलें पधारो मन खुसी, जिहो लाभ अनंतो देष ॥ भ० ॥ ८१ ॥
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