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બીજી સાહિત્ય પરિષદના પ્રમુખનું ભાષણ
बप्पीहा पिउ पिउ भणवि कित्तिउ रुअहि हयास । तुह जलि महु पुणु वल्लहह विवि न पूरिअ आस ॥ हिअइ खुडुका गोरडी गयणि धुडुइक्क मेहु । वासारर्ति पवासु अहं विसमा मंकडु पहु ॥ तं तेत्तिउ जलु सायर हो सो तेवडु वित्थारु । .. तिसहे निवारणु पलु विनवि पर धुध्धुअइ असारु ॥ जं दि©उ सोमग्गहणु असइहिं हासउ निसङ्कु । पिअमाणु स विच्छोहगरु गिलि गिलि राहु मयकु ।
अन्ने ते दीहर णअण अन्नु तं मुअजु अलु । अन्नु सु घणथणहारु तं अन्नु जि मुहकमलु ॥ अन्नु जि केस कलावु सु अन्नु जि पाउविहि।
जेण णिअम्बिणि घडिअ स गुणलावण्णनि हि ॥ पिअसंगमि कउ निघडी पिअहों परो कखहो केम्ब । मई बिन्नि बि विन्नासिआ निद्द न एव न तेम्व ॥ नाइजाइ तहिं देसडइ लभइ पियहो पमाणु । जइ आवइ तो आणिअइ अहवा तं जि निवाणु ॥ जह पवसन्ते सहु न गय न मुअ विओए तस्सु । लज्जि ज्जा संदेसडा दिन्तिहिं सुहय जणस्सु ॥ खज्जइ नउ कसरक्केहिं पिजइ नउ घुण्टेहिं । एम्वा होइ सुहच्छडी पिएं दिढे नयणेहि ॥ सिरि जरखण्डी लोअडी गलि मणियडा नवीस । तोवि गोठडा कराविआ मुद्धए उट्ठ वईस ॥ अबभा लग्गा डुङ्गरिहिं पढिउ रडन्तउ जाइ । जो एहा गिरि गिलणमणु सो कि धणहे घणइं ॥ सिरि चडिआ तोडन्ति फल पुणु डालई मोडन्ति । तोवि महदुम सउणाहुं अपराहिउ न करन्ति ॥
નીચેના બે દુહા મુંજ રાજાને લગતી પ્રાચીનતર લોકકવિતાના હાઈ લક્ષ રેકે છે.
रक्खइ सा विसहारिणी ते कर चुम्बिधि जीउ । पडि बिम्बि अमुञ्जालु जलु जेहिं अडोहिउ पिउ । बाह विछोडवि जाहि तुहं हुउ तेम्बइ को दोसु । हिअ अछिअ जइ नीसरहि जाणउं मुञ्ज सरोसु ॥
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