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________________ वेदाङ्ग ४६ कात्यायन के श्रौत और शुल्व सूत्र तथा पारस्कर के गृह्यसूत्र हैं। सामवेद को कौथुम शाखा के साथ संबद्ध कात्यायन के श्रौतसूत्र हैं । सामवेद की राणायनीय शाखा के साथ संबद्ध द्राह्मायण के श्रौत्रसूत्र हैं। ये दोनों श्रौतसूत्र ताण्ड यब्राह्मण पर निर्भर है । जैमिनि के गृह्य और श्रौतसूत्र, गोभिल के गृह्यसूत्र और खादिर के गृह्यसूत्रों का सम्बन्ध द्राह्मायण शाखा से है और ये राणायनीय शाखा में भी उपयोग में आते हैं। इसके अतिरिक्त इस वेद से संबद्ध ये ग्रन्थ हैं :-१ आर्षेय कल्प, इसका दूसरा नाम मशककल्पसूत्र है। इसमें ताण्ड य शाखा वालों के द्वारा सोम यज्ञ के समय गाए जाने वाले मन्त्रों को सूची भी है । २. अनुपसूत्र, ये ताण्डयब्राह्मण को व्याख्या करते हैं, ३. निदानसूत्र, इनमें छन्दों का वर्णन है, ४. उपग्रन्यसूत्र, सामवेद से संबद्ध यज्ञों को विधि का वर्णन करते हैं, ५. क्षुत्रसूत्र, सामवेद की विधियों का वर्णन करता है, ६. ताण्डलक्षणसूत्र, ७. कल्पानुपदसूत्र, ८. अनुस्तोत्रसूत्र, ६. द्राह्मायण के गृह्यसूत्र । अथर्ववेद से संबद्ध वैतानश्रोतसूत्र और कौशिकसूत्र हैं । इनमें गृह्यसूत्रों का विषय वर्णित है । अथर्ववेद का वैदिक यज्ञों से साक्षात् सम्बन्ध नहीं है, अतः इसके अन्य सूत्र नहीं हैं । __ गृह्यसूत्रों के पश्चात् श्राद्धकल्प और पितृमेधसूत्र पाते हैं । इनमें पितरों से संबद्ध श्राद्ध और तर्पण का वर्णन है । मानवश्राद्ध कल्प, कात्यायानश्राद्धकल्प बोधायनपितृमेधसूत्र आदि इसो विषय से संबद्ध हैं । कल्पसूत्र में जिन विधियों का वर्णन संक्षेप में है, उनका विस्तृत वर्णन 'परिशिष्ट' ग्रन्थों में है । कात्यायन के छान्दोग्य और अथर्व परिशिष्ट, ऋतुसंग्रह, विनियोगसंग्रह और शौनक का चरणव्यूह इसो विषय के ग्रन्थ है। चरणव्यूह में वैदिक शाखाओं का वर्णन है । गाभिलपुत्र के गृह्यसंग्रहपरिशिष्ट और कर्मप्रदीप का सम्बन्ध गोभिलगह्यसूत्र से है । प्रायश्चित्तसूत्रों का सम्बन्ध अथर्ववेद के वितानसूत्रों से है । प्रयोग ग्रन्थ, पद्धतियों और कारिकाओं का सम्बन्ध कल्पसूत्रों से है । वेदांगों का महत्त्व निम्नलिखित श्लोक में अच्छे प्रकार से प्रकट किया गया है-- सं० सा० इ०--४
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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