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अध्याय ५
वैदिक संहिताएं, ब्राह्मण-ग्रन्थ और प्रारण्यक-ग्रन्थ ऋग्वेद में १०१७ सूक्त हैं और बालखिल्य सूक्त को लेकर कुल १०२८ सूक्त हैं । यह दस भागों में विभक्त है, जिन्हें मण्डल कहते हैं। इसका एक दूसरा विभाजन पाठ भागों में है। इनमें से प्रत्येक विभाग को अष्टक कहते हैं । इनमें से अष्टक वाला विभाजन अधिक प्रचलित है। पाश्चात्य विद्वानों का मत है कि विभिन्न समय में विभिन्न ऋषियों ने ऋक्संहिता को बनाया है। द्वितीय से लेकर सप्तम तक ६ मण्डल एक-एक ऋषि के नाम से हैं । इन मंडलों में बाह्य और आन्तरिक क्रम-बद्धता तथा समानता है। अतः ये ऋग्वेद के आधारभूत अंश हैं । अष्टम मण्डल के सूक्त दो ऋषियों के नाम से हैं और नवम मण्डल के सूक्त सोम पवमान के नाम से हैं। अन्य मण्डलों के सूक्त विभिन्न ऋषियों के नाम से हैं । प्रथम और अन्तिम तीन मण्डल ये बाद में विभिन्न ऋषियों ने बनाये होंगे और मूल ग्रन्थ के साथ जोड़ दिया होगा। ___ प्रारम्भ में ऋग्वेद की पाँच शाखाएं थीं । उनके नाम हैं-शाकल, बाष्कल, आश्वलायन, शांख्यायन और माण्डूकेय। इनमें से केवल प्रथम शाखा प्राप्य है । द्वितीय में प्रथम से केवल आठ सूक्त अधिक हैं । शेष तीन में कोई विशेष अन्तर नहीं है और उनका स्वतन्त्र अस्तित्व भी नहीं है।
ऋग्वेद में विभिन्न देवताओं की प्रशंसा वाले सूक्त, यज्ञिय कार्यों के उपयोगी मन्त्र, कर्मकाण्ड की विधि वाले मन्त्र, उपासना सूक्त, दार्शनिक सूक्त, विवाह-सम्बन्धी स्वस्तिवाचन तथा आरोग्य-कारक मन्त्र मादि हैं।
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सं० सा० इ०-३