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आस्तिक दर्शन और धार्मिक दर्शन
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पाशुपत इस शाखा का दूसरा नाम नकुलीशपाशुपत शाखा है । शिव स्वामी हैं और उसके अतिरिक्त अन्य सभी पशु हैं। ईसवीय सन् के प्रारम्भ में लकुलीश या नकुलीश ने इस मत के सिद्धान्तों का प्रचार किया था । बहुत सम्भव है कि वह लकुट या लगड लिये रहता था जिसका अर्थ होता है 'गदा' । यह सम्प्रदाय ५ सिद्धान्तों को स्वीकार करता है। उनके नाम हैं--कार्य, कारण, योग, विधि तथा दुखान्त । शिव निरपेक्षरूप से कार्य करते हैं। इसलिए उन्हें संसार की रचना के लिए आत्माओं के कर्म की भी आवश्यकता नहीं होती। पाँचों सिद्धान्त प्रत्यक्ष करने योग्य है । मोक्ष प्राप्ति के लिए चिन्तन, आत्मसमर्पण तथा अन्य साधन हैं । सांसारिक दुखों से परे किसी सर्वश्रेष्ठ शक्ति की प्राप्ति का नाम मोक्ष है। नकुलिश ने शिवसूत्रों की रचना की है। पाशुपत सूत्र और हरदत्ताचार्य के ग्रन्थ इस शाखा के प्रामाणिक ग्रन्थ माने जाते हैं । सर्वदर्शनसंग्रह (लगभग १४०० ई० ) में हरदत्ताचार्य का उल्लेख आता है । न्यायसार के लेखक भासर्वज्ञ (९०० ई०) ने गणकारिका नामक ग्रन्थ लिखा।
शैव
यह शाखा शैव आगमों पर निर्भर है । इन आगमों के कामिक, कारण, सुप्रभेद और वातुल ये बहुत अधिक प्रामाणिक प्रागम माने जाते हैं। शिव सर्वोत्तम देवता है । बुद्ध जोव ६ सिद्धान्तों के ज्ञान से मोक्ष पा सकते हैं। वे ६ सिद्धान्त ये हैं--(१) पति (स्वामी, शिव), (२) विद्या (तत्त्वज्ञान), (३) अविद्या, (४) पशु (जीव), (५) पाश (बन्धन, जैसे कर्म, माया आदि) और (६) कारण (शिव की भक्ति, जिसके द्वारा बन्धन से मुक्त होते हैं)। जीव को भक्ति का मार्ग अपनाना चाहिए । इस संप्रदाय में सांख्य और योग के सिद्धान्तों का अनुसरण किया गया है। श्रीकण्ठ का ब्रह्मसूत्रभाष्य यद्यपि वेदान्तविषयक है, तथापि इस सम्प्रदाय का समर्थक समझना चाहिए । धारा के राजा भोज (१००५-१०५४ ई०) का तत्त्वप्रकाश और रामकण्ठ (११५०