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________________ ३८६ संस्कृत साहित्य का इतिहास शबरस्वामी के भाष्य की टीका कुमारिल भट्ट ( ६००-६६० ई० ) और प्रभाकर ( ६१०-६६० ई० ) ने को है । प्रभाकर कुमारिल भट्ट का शिष्य माना जाता है । उसने मीमांसा-दर्शन को एक नवीन शाखा स्थापित की जिसका नाम उसके नाम के आधार पर प्राभाकर शाखा पड़ा। कुमारिल भट्ट से उसका जिन बातों पर मतभेद था, उनका इस शाखा में निरूपण किया गया है । प्रभाकर को 'गुरु' को उपाधि प्राप्ति हुई थी, क्योंकि वेदों की व्याख्या में उसकी प्रतिभा असाधारण थी । अतएव कुमारिल की शाखा के मतों को भाट्टमत कहा गया और प्रभाकर की शाखा के मतों को गुरुमत । कर्मों के द्वारा उत्पन्न होने वाले संस्कारों के कारण मनुष्य सांसारिक बन्धन में आता है। दोनों शाखाओं का मत है कि जब आत्मा में कोई संस्कार नहीं रहता है, तब वह मुक्त हो जाता है । भाट्टमत के अनुसार धर्म और अधर्म का अर्थ है--कर्मों के अच्छे और बुरे परिणाम । प्रभाकर मत के अनुसार धर्म और अधर्म का अर्थ है--अच्छा और बुरा कार्य । इन दोनों शाखाओं के अतिरिक्त एक और शाखा मुरारि के नाम से प्रचलित हुई । मुरारि ने कुमारिल को ही पद्धति का अनुसरण करते हुए शबरस्वामी के भाष्य की टीका की है । कुछ स्थानों पर उसका कुमारिल से मतभेद है। ___ कुमारिल ने शाबर-भाष्य की जो टीका की है, वह ३ भागों में है--(१) श्लोकवार्तिक । यह मीमांसा-दर्शन के प्रथम अध्याय के प्रथम पाद की श्लोकबद्ध टीका है । (२) तन्त्रवार्तिक । यह गद्य और पद्य में है । यह मीमांसा-दर्शन के प्रथम अध्याय के द्वितीय पाद से प्रारम्भ होकर तृतीय अध्याय के अन्त तक की टीका है । (३) टुप्टीका । वह शेष भाग की टीका है । परकालीन लेखकों ने जो उद्धरण दिए हैं, उनसे ज्ञात होता है कि कुमारिल भट्ट ने मीमांसासूत्रभाष्य को एक टोका बृहट्टीका नाम से की थी। शावर-भाष्य पर प्रभाकर की टोका दो भागों में है--(१) बृहती। इसका दूसरा नाम निबन्ध है । (२) लघ्वी । इसका दूसरा नाम विवरण है। मुरारि मिश्र ( लगभग १२०० ई० ) ने शाबर-भाष्य पर जो
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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