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आस्तिक-दर्शन पातंजलिभाष्यवार्तिक नामक टीका को है । विज्ञानभिक्षु ने योगदर्शन के आवश्यक सिद्धान्तों पर योगसारसंग्रह नामक ग्रन्थ भी लिखा है।
योग-सम्बन्धी अभ्यासों को दो भागों में बाँटा गया है--राजयोग और हठयोग। राजयोग में मन की एकाग्रता का वर्णन होता है और हठयोग में शारीरिक शुद्धि के लिए उपयोगी विभिन्न अभ्यासों का वर्णन होता है, जिनके द्वारा शरीर शुद्ध होकर राजयोग के योग्य होता है । हठयोग का वर्णन स्वात्माराम योगीन्द्र की हठयोगप्रदीपिका पुस्तक में है। शरीर के विभिन्न अवयवों पर पूर्ण संयम प्राप्त करने के लिए योगासनों को बहुत महत्त्व दिया गया है,। हटयोग के अनुसार हठयोग के अभ्यास से भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है । हठयोग के अन्य ग्रन्थ हैं-- गोरक्षशतक, घेरण्डसंहिता आदि । ___ सांख्य और योगदर्शन की विश्व-साहित्य को मुख्य देन ये हैं-पंचीकरण, सत्कार्यवाद और परिणामवाद के सिद्धान्त, सत्व, रजस् और तमस् इन तीन गुणों का महत्त्व तथा बुद्धि और आत्मा को प्रभावित करने में इनका स्थान, प्रकृति और पुरुष (प्रात्मा ) को स्वतन्त्र सत्ता मानते हुए उनका विशेष विवेचन, व्यावहारिक जीवन के लिए योगांगों की उपयोगिता का विशेषरूप से प्रतिपादन । योगदर्शन वेदों को प्रामाणिकता को स्वीकार करता है । इस दर्शन के अनुसार ईश्वर जगत् का हितैषी और पथप्रदर्शक है । इसमें इस बात का समाधान नहीं किया गया है कि वस्तुतः प्रकृति से सृष्टि कैसे होती है । जीवन का लक्ष्य प्रात्मज्ञान और कैवल्यप्राप्ति है, परन्तु इसका ईश्वर से साक्षात् कोई सम्बन्ध नहीं है ।