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संस्कृत साहित्य का इतिहास
मिश्र की उपाधि दी गई थी । वह एक नाट्यकार और साहित्यशास्त्री भी था । जयदेव के शिष्य रुचिदत्त ( लगभग १२५० ई०) ने वर्धमान के तत्त्वचिन्तामणिप्रकाश पर तत्त्वचिन्तामणिप्रकाशमकरन्द नामक टीका लिखी है । १५वीं शताब्दी का सर्वश्रेष्ठ नैयायिक वासुदेवसार्वभौम बंगाल के नवद्वीप में न्याय की एक शाखा नव्यन्याय का नेता था । उसके चार सुविख्यात शिष्य थे( १ ) रघुनाथशिरोमणि । उसका प्रसिद्ध नाम ताकिकशिरोमणि है । (२) रघुनन्दन, वह बंगाल का एक सुप्रसिद्ध वकील था । ( ३ ) कृष्णानन्द वह एक तान्त्रिक था । ( ४ ) चैतन्य । वह वैष्णव धर्म के सुप्रसिद्ध प्रचारक थे । रघुनाथशिरोमणि ( लगभग १५०० ई० ) ने अपने पूर्ववर्ती लेखकों के ग्रन्थों की टीका दीधिति नाम से को है, उसने जिन ग्रन्थों को टोका को है, उसमें तत्त्वचिन्तामणि भी है । रघुनाथशिरोमणि के शिष्य मथुरानाथ ( लगभग १५२० ई० ) ने गंगेश के ग्रन्थों तथा दीधिति टीका को टीका की है । जगदीश, गदाधर और भट्ट ये तीन १७वीं शताब्दी ई० के प्रमुख नैयायिक थे | जगदीश ( लगभग १६३५ ई०) ने दीधिति की टोका को है । गदाधर को दीधिति और तत्वचिन्तामणि पर टीकाएँ न्याय और वैशेषिक दर्शन पर प्रति प्रसिद्ध ग्रन्थ हो गए हैं । अन्नंभट्ट ने जयदेव के तत्त्वचिन्तामण्यालोक की टीका सिद्धाञ्जन नाम से की है और दीधिति की टीका सुषुद्धिमनोहरा नाम से की है ।
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इस काल में तत्त्वचिन्तामणि पर जो टीकाएँ लिखी गईं, उनके अतिरिक्त कुछ स्वतन्त्र ग्रन्थ भी लिखे गए । केशवमिश्र ( १३०० ई० ) ने तर्कभाषा ग्रन्थ लिखा । रघुनाथशिरोमणि ( लगभग १५०० ई०) ने वैशेषिक दर्शन के सिद्धान्तों पर पदार्थखण्डन नामक ग्रन्थ लिखा है । जानकीनाथ ने १६वीं शताब्दी में न्याय और वैशेषिक दर्शन के सिद्धान्तों पर न्यायसिद्धान्तमंजरी नामक ग्रन्थ लिखा है । १७वीं शताब्दी में कई लेखक हुए हैं, जिन्होंने न्याय और वैशेषिक दर्शन पर मौलिक ग्रन्थ लिखे हैं । वैशेषिक सूत्रों पर उपस्कारभाष्य के लेखक शंकर मिश्र ने वैशेषिक दर्शन के सिद्धान्तों पर कणादरहस्य ग्रन्थ लिखा है । faracter न्यायपंचानन ने १६३४ ई० में न्याय और वैशेषिक दर्शन पर