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अध्याय ३३
आस्तिक-दर्शन न्याय, वैशेषिक, सांख्य और योग आस्तिक-दर्शन ६ हैं । उनके नाम हैं--न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा और वेदान्त । इन सभी दर्शनों के मूल-सिद्धान्त वैदिक-ग्रन्थों से लिए गये हैं । इन दर्शनों का विकास उपनिषदों के समय से हुआ है । अतएव इन दर्शनों का कालक्रम के अनुसार वर्णन संभव नहीं है । इनमें स्व-सिद्धान्तों का वर्णन सूत्रों के रूप में हुआ है । वेदान्तदर्शन और मीमांसादर्शन के सूत्रों के रचयिता क्रमशः बादरायण और जैमिनि हैं । बादरायण और महाभारत के लेखक व्यास, दोनों एक ही व्यक्ति माने जाते हैं । जैमिनि व्यास का शिष्य माना जाता है । सांख्यदर्शन और योगदर्शन के रचयिता क्रमशः कपिल और पतंजलि हैं। यह पतंजलि और महाभाष्य के रचयिता वैयाकरण पतंजलि एक ही व्यक्ति माने जाते हैं। न्यायदर्शन और वैशेषिकदर्शन के रचयिता क्रमशः गौतम और कणाद हैं।
इन दर्शनों में तत्त्वों का स्वमतानुसार विभिन्न रूप से विभाजन किया गया है । इन दर्शनों का मन्तव्य है कि इन तत्त्वों के ज्ञान से ही मोक्ष प्राप्त हो सकता है । इन तत्वों के ज्ञान के लिए वे प्रमाणों का स्वमतानुसार लक्षण देते हैं । इन दर्शनों के अनुसार प्रमाण २ से लेकर ८ तक हैं । प्रत्येक दर्शन में प्रमाणों की संख्या विभिन्न हैं ।
___ न्याय और वैशेषिक-दर्शन ये दोनों दर्शन वैज्ञानिक तर्क-पद्धति पर विशेष बल देते हैं । ऐसी तर्कपद्धति का प्रारम्भ बृहदारण्यक आदि उपनिषदों से हुआ है । 'न्याय' शब्द का प्रारम्भ में अर्थ था, वेदों की न्यायोचित विधि से व्याख्या करना । न्याय शब्द से