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नास्तिक-दर्शन
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कालीन । प्राचीन संस्करण का लेखक जिनसेन ( ७८४ ई० ) हैं और दूसरे के लेखक १५वीं शताब्दी ई० के सकलकीर्ति और उसके शिष्य जिनदास हैं । (५) जिनसेन (हवीं शताब्दी ई० ) कृत आदिपुराण (६) ई० ) कृत उत्तरपुराण । यह आदिपुराण का ही संलग्नरूप है । ( ६६० ई० ) कृत पद्मपुराण और (८) शुभचन्द्र ( १५५१ ई० पुराण |
गुणभद्र (८६८ ( ७ ) रविषेण
) कृत पाण्डव
अहिंसा- सिद्धान्त के अपनाने से ही जैन धर्म का विशेष प्रचार हुआ । यह मत धर्म के नैतिक सिद्धान्तों पर जितना बल देता है, उतना विवेचनात्मक विषयों पर नहीं । बौद्धों की अपेक्षा जैनों ने संस्कृत साहित्य को अधिक देन दी है । जैनों के काव्य सरल और सुन्दर हैं । उन्होंने प्राकृत भाषा के साहित्य के विकास में भी बहुत योग दिया है ।