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नास्तिक-दर्शन
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शून्यतासप्तति, (३) प्रतीत्यसमुत्पादहृदय, (४) महायानविशक (५) विग्रहव्यावर्तनी (न्यायशास्त्रविषयक), ( ६ ) धर्मसंग्रह, ( ७ ) सुहृल्लेख, ( ८ ) प्रमाणविध्वसन और (६) पंचपराक्रम ( कर्मकाण्ड-विषयक ) आदि । योगाचार शाखा को ईसवीय सन् के पश्चात् महत्त्व प्राप्त हुआ । इसका श्रेय. मैत्रेय को है । वह ४०० ई० से पूर्व हुआ था। उसने ये ग्रन्थ लिखे हैं( १ ) बोधिसत्त्वचर्या-निर्देश, (२) सप्तदशभूमिशास्त्र-योगचर्या और ( ३ ) अभिसमयालंकारकारिका । असङ्ग मैत्रेय का शिष्य था । वह चतुर्थ शताब्दी ई० में हरा था । उसने योगाचारभूमिसूत्र और स्वटीकासहित महायानसूत्रालंकारसूत्र ये दो ग्रन्थ लिखे हैं। उसने इनके अतिरिक्त १० ग्रन्थ और लिखे हैं । वे चीनो और ति-बती भाषा में प्राप्त होते हैं । बसुबन्धु प्रसंग का भाई था। वह पहले हीनयान-शाखा का अनुयायी था और उसने उस शाखा के सिद्वान्तों पर दो ग्रन्थ लिखे--गाथासंग्रह और अभिधर्मकोश । बाद में वह महायान शाखा का अनुयायी हो गया और उसने बहुत से ग्रन्थ लिखे । उन ग्रन्थों के मल रूप नष्ट हो गए हैं । उसने ये ग्रन्थ लिखे हैं--(१) वादविधि, (२) बादमार्ग, (३) वादकौशल, (४) तर्कशास्त्र और (५) परमार्थसप्तति । यह सांख्यकारिका का खण्डनात्मक ग्रन्थ है । दिङ नाग वसुबन्धु का शिष्य था। वह ४०० ई० के लगभग हुआ था। वह बौद्ध-न्यायशास्त्र का संस्थापक था। उसने ये ग्रन्थ लिखे हैं-(१) प्रमाणसमुच्चय तथा उसकी वृत्ति (टीका). (२) न्यायप्रवेश, (३) हेतुचक्र, (४) पालम्बनपरीक्षा तथा उसकी वृत्ति और (५) त्रिकालपरीक्षा आदि । इनमें से न्यायप्रवेश को छोड़कर अन्य के मूल ग्रन्थ नष्ट हो गए हैं । परमार्थ (४६८-५६६ ई.) ने संस्कृत में लिखे हुए बहुत से ग्रन्थों का चीनी भाषा में अनुवाद किया है। शान्तिदेव (७वीं शताब्दी ई.) ने ये ग्रन्थ लिखे हैं--(१) शिक्षासमुच्चय, (२) सूत्रसमुच्चय, और (३) बोधिचर्यावतार । धर्मकीर्ति (लगभग ६५० ई०) अपने समय में आस्तिकदर्शनों का प्रबल विरोधी था। उसने बौद्ध दर्शन तथा बौद्ध न्यायशास्त्र पर कई ग्रन्थ लिखे हैं । उसके ग्रन्थ ये हैं--(१) प्रमाणवातिककारिका तथा उसकी वृत्ति, (२) प्रमाणविनिश्चय, (३) न्यायबिन्दु, (४) हेतुबिन्दु