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उपवेद
३३७ इस वेद का आरम्भ अथर्ववेद से हुआ है । वैदिक ग्रन्थों में गर्भ-विज्ञान, स्वास्थ्यविज्ञान और शल्य-चिकित्सा का उल्लेख है । आयुर्वेद के जो ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं, उनमें प्रात्रेय, काश्यप, हारीत, अग्निवेश और भेल के नाम का उल्लेख है । ऐसा माना जाता है कि इनमें से प्रत्येक ने आयुर्वेद का कोई ग्रन्थ लिखा है या आयुर्वेद की किसी शाखा की स्थापना की है। ____ आयुर्वेद के विकास का धर्मशास्त्र के विकास के साथ बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध है । पुराणों और स्मृति-ग्रन्थों में वैद्यक का कुछ अंश वर्णन किया गया है। स्मृतियों और पुराणों में मनुष्य के कर्तव्य का जो वर्णन किया गया है, उसमें स्वास्थ्य के सिद्धान्तों का भी वर्णन विद्यमान है। उनका आयुर्वेद पर प्रभाव पड़ा है, क्योंकि आयुर्वेद धर्मशास्त्रों में वर्णित विधि के साथ मनुष्य जीवन के यापन को ध्यान में रखकर विभिन्न विषयों का वर्णन करता है। सांख्य और योग दर्शनों ने आयुर्वेद के बौद्धिक पक्ष को प्रभावित किया है और वेदान्त दर्शन ने आध्यात्मिक पक्ष को प्रभावित किया है । अपने सिद्धान्तों के अनुसार ही रोगों की चिकित्सा का वर्णन किया गया है। कई धार्मिक कार्यों ने आयुर्वेद को बहुत अंश तक प्रभावित किया है। हिन्दू धर्म के अनुयायी उपवास को विशेष अवसरों पर आवश्यक समझते हैं । स्वस्थ शरीर में आत्मा को स्वस्थ रखने के लिए आयुर्वेद उपवास को आवश्यक कार्य मानता है। शरीर और मन की रचना के विकास के लिए यह आवश्यक है कि इस बात का ध्यान रक्खा जाए कि किस प्रकार का भोजन करना चाहिए, किस समय और किस स्थान पर तथा किस विधि से किया जाय । प्रकृति के तीन गुण सत्व, रजस् और तमस् का शरीर के त्रिदोष कफ, वात और पित्त के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है तथा इन त्रिदोषों का उन पर बहुत प्रभाव पड़ता है । भोजन केवल क्षुधा की शान्ति और शरीर की पुष्टि के लिए ही नहीं खाया जाता है । भोज्य-पदार्थ के गुणों के द्वारा यह निर्णय किया जा सकता है कि भोजन किस
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