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________________ ३२४ संस्कृत साहित्य का इतिहास गणना यूनानियों के नगर से की गई है । सूर्य और चन्द्रमा के अयनवृत्त संबंधी संक्रमणों की गणना की गई है। पौलिशसिद्धान्त का वर्णन शद्ध है । इसमें ग्रहणों का संक्षिप्त विवेचन है । यूनानियों के नगर और उज्जैन के मध्य देशान्तरों को दूरो का उल्लेख किया गया है। इसमें भूमध्यरेखाओं के विस्तृत चित्र दिए गए हैं। इसने मण्डलात्मक गणित ज्योतिष को विशेष देन दी है। नक्षत्रों के भ्रमण तथा ग्रहों की गति में वैषम्य का निरीक्षण किया गया । इन सभी शाखाओं में सूर्यसिद्धान्त सबसे अधिक शुद्ध और मान्य है । इसने केन्द्र के समीकरण के लिए सामान्य नियम दिए हैं। इसमें ग्रहणों का विस्तृत विवेचन किया गया है । वसिष्ठ शाखा वालों ने ग्रहों की गति और स्थिति को विषमता का विवेचन किया है । __ भारतीय गणित ज्योतिष का सबसे प्राचीन और प्रामाणिक प्राचार्य वराहमिहिर है । उसका ५८७ ई० में स्वर्गवास हुआ था । उसने अपनी पंचसिद्धान्तिका में पूर्वोक्त पांचों ज्योतिष की शाखाओं का वर्णन किया है। लल्ल ने ७४८ ई० के लगभग शिष्यधीवृद्धितन्त्र ग्रन्थ लिखा है। इसमें उसने ज्योतिष की ओर छात्रों को प्रवृत्ति को प्रोत्साहित किया है । इस पर भास्कर ने १२वीं शताब्दो में टोका लिखी है । आर्यभट्ट ने ६५० ई० के लगभग आर्यसिद्धान्त ग्रन्थ लिखा है । आदित्यप्रतापसिद्धान्त महाराज भोज (१००५१०५४ ई०) को रचना है। एक अज्ञात लेखक का १३५० ई० से पूर्व का लिखा हुआ विद्यामाधवीय ग्रन्थ प्राप्त होता है । इसमें लेखक ने वसिष्ठ, बृहस्पति और गार्य आदि प्राचीन लेखकों की उक्तियों का विशद विवेचन किया है । एक वृद्धवासिष्ठसंहिता प्राप्त होती है। इसका समय अज्ञात है, किन्तु यह एक प्राचीन ग्रन्थ है । ज्योतिर्विदाभरण ग्रन्थ का लेखक कालिदास माना जाता है । इसमें ज्योतिष सम्बन्धी विषयों का विवेचन किया गया है । यह नवीन रचना है। ___ फलित ज्योतिष पर सबसे प्राचीन ग्रन्थ यवनजातक है । वह नैपाली हस्तलिखित प्रति के रूप में सुरक्षित है । उस ग्रन्थ में यह लिखा हुआ है कि
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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