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________________ शास्त्रीय ग्रन्थ इसमें ८ अध्याय हैं। अध्ययन के लिए इस पद्धति को सरल बनाने के लिए लेखक ने ग्रन्थ के कलेवर में वार्तिक, उणादिसूत्र और परिभाषाओं को एकत्र कर दिया है । वैदिक धर्म का अनुयायी होने के कारण उसका प्रयास पणिनिविरुद्ध नहीं है । संस्कृत के अध्ययन को सरल करने के लिए उसने सूत्रों की रचना स्वतः की थी। हेमचन्द्र शाखा का संस्थापक जैन हेमचन्द्र (१०८८-११७२ ई०) था । उसने शब्दानुशासन ग्रन्थ लिखा है । इसमें आठ अध्यायों में ४५०० सूत्र हैं । इसके अन्तिम अध्याय में प्राकृत व्याकरण है । इस पर हेमचन्द्र ने ही बृहद्वृत्ति नामक टीका लिखी है । हेमचन्द्र के शब्दानुशासन पर मेघविजय (१७वीं शताब्दी ई०) ने शब्दचन्द्रिका नामक टोका लिखी है। हेमचन्द्र की बृहद्वृत्ति पर देवेन्द्र सूरि (समय अज्ञात) ने हेमलघुन्यास नामक टोका लिखी है । ___ कातन्त्र शाखा की स्थापना पाणिनीय व्याकरण के संक्षेप के रूप में हुई । शरवर्मा, जिसका दूसरा नाम शर्ववर्मा है, गुणाढ्य का प्रतिद्वन्द्वी था । उसने राजा सातवाहन से प्रतिज्ञा की कि वह उसे ६ मास में संस्कृत भाषा सिखा देगा। उसने सुब्रह्मण्य की उपासना की और उसने प्रसन्न होकर उसको सरल व्याकरण प्रकट किया । उसका ही नाम कातन्त्र, कलाप या कौमार व्याकरण है । इस ग्रन्थ का समय प्रथम शताब्दी ई० पू० या ई० में मानना चाहिए । यह पाणिनि की अष्टाध्यायो से कुछ संक्षिप्त है । इस कातन्त्र व्याकरण में चार अध्याय हैं और १४०० सूत्र हैं। इसमें प्रत्याहारों को हटाकर उनका पूरा रूप दिया गया है। इसमें सूत्रों को सिद्धान्तकौमुदी के तुल्य ही विषयानुसार रक्खा गया है। इस पर ८वीं शताब्दी में दुर्गसिंह ने टोका लिखी है। यह ग्रन्थ कश्मीर और लङ्का में बहुत प्रचलित हुआ है । कश्मीर में भट्ट जयधर ने इसी शाखा पर बालबोधिनी नामक ग्रन्थ लिखा है । इस पर उग्रभूति ने न्यास नाम को टोका लिखी है । सारस्वत शाखा की उत्पत्ति मुस्लिम राजाओं की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हुई थी। इस व्याकरण में केवल ७०० सूत्र हैं । इस व्याकरण
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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