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शास्त्रीय ग्रन्थ
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गणपाठ और उणादिसूत्र भी लिखे हैं । कुछ विद्वानों का मत है कि पाणिनि के उणादि सूत्रों का संशोधन कात्यायन ने किया है और कुछ का मत है कि उणादिसूत्रों का लेखक ही कात्यायन है ।
पाणिनि की अष्टाध्यायी की समीक्षा और उसका भाष्य बहुत लेखकों ने किया था, परन्तु उनके ग्रन्थ नष्ट हो गये हैं । यह माना जाता है कि प्राचार्य व्याडि ने पाणिनि की अष्टाध्यायी की व्याख्या के रूप में एक लाख श्लोकों से युक्त एक संग्रह नामक ग्रन्थ लिखा था । पतंजलि ने इस ग्रन्थ के उद्धरण दिये हैं, परन्तु यह ग्रन्थ अव नष्ट हो गया है । कात्यायन ने पाणिनि की अष्टाध्यायी की व्याख्या के रूप में गद्य और पद्य में वार्तिक लिखे हैं । कात्यायन का समय ५०० ई० पू० और ३५० ई० पू० के बीच में है । उसने अष्टाध्यायी में ग्रावश्यक संशोधन, परिवर्तन और परिवर्धन किये हैं । उसने कई स्थानों पर अपने सुझाव प्रस्तुत किये हैं और कई स्थानों पर पाणिनि के नियमों को अनावश्यक भी बताया है । वह वाजसनेयि प्रातिशाख्य और वाजसनेयि श्रौतसूत्र का भी लेखक माना जाता है । कात्यायन और वररुचि एक ही व्यक्ति माने जाते हैं । वररुचि के लिखे हुए ये ग्रन्थ माने जाते हैं -- लिंगानुशासन, कारकरचना, समाज आदि के विषय में २५ स्मरणीय पंक्तियों में वररुचिसंग्रह, पुष्पसूत्र और एक काव्य वररुचिकाव्य ।
इसके पश्चात् जिस वैयाकरण का ग्रन्थ उपलब्ध होता है, वह है पतंजलि । उसने महाभाष्य ग्रन्थ लिखा है । उसका समय १५० ई० पू० के लगभग है । पतंजलि ने व्याडि के संग्रह ग्रन्थ से पर्याप्त सहायता ली है। उसने पाणिनि के सूत्रों के विषय में अपनी इष्टियाँ भी लिखी हैं कि यहाँ पर ऐसा होना चाहिए । पाणिनि पर कात्यायन ने जो कतिपय स्थलों पर आक्षेप किये हैं, उनका उसने उत्तर दिया है और पाणिनि का समर्थन किया है । उसने अपने पूर्ववर्ती कतिपय वैयाकरणों का उल्लेख किया है । महाभाष्य में उसकी शैली अत्यन्त मनोरम और सरल है । इसी कारण सम्पूर्ण संस्कृत साहित्य में उसकी शैली आदर्श और अनुपम है । आकार और विषय दोनों की दृष्टि से इसे महाभाष्य सं० सा० इ० -- २०