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अध्याय २६
शास्त्रीय ग्रन्थ शास्त्रीय ग्रन्थों की विशेषताएँ और व्याकरण .... शास्त्र शब्द का प्रयोग साहित्य के उस विभाग के लिए होता है, जिसका विवेचन वैज्ञानिक पद्धति से होता है । शास्त्र शब्द का अर्थ है--जिसके द्वारा किसी बात की शिक्षा दी जाती है ।
शिष्यतेऽनेनेति शास्त्रम् । प्रारम्भ में इस शब्द का प्रयोग उन विषयों के लिए ही होता था, जिनका सम्बन्ध वैदिक ग्रन्थों से था । बाद में इस शब्द का प्रयोग उन सभी विषयों के लिए होने लगा, जिनका विवेचन वैदिक विषयों के तुल्य वैज्ञानिक विधि से होने लगा । शास्त्र नाम से निष्टि विषयों को उत्पत्ति कारण यह ज्ञात होता है कि सभी विषयों का विवेचन वैदिक शीर्षक के अन्दर करने में कतिपय कठिनाइयाँ अनुभव हुई होंगी। धीरे-धीरे प्रत्येक विषय का अपना स्वतंत्र महत्त्व होने लगा और उसका विशेष रूप से अध्ययन होने लगा। इन विशेष अध्ययनों में भी अन्य विषयों के सामान्य सिद्धान्तों का प्रतिपादन होता था। इस प्रकार व्याकरण, निरुक्त और यज्ञ आदि के विवेचन के आधार पर वैयाकरण, नरुक्त, याज्ञिक आदि की शास्त्रीय शाखाएँ बन गयीं।
शास्त्रों की विशेषताएँ शास्त्रों के मौलिक सिद्धान्त साधारणतया सूत्र रूप में लिखे गये हैं। सूत्र संक्षेप में सिद्धान्त का निर्देश करते हैं। सूत्रों की विधि इसलिए अपनायो गयो कि विद्यार्थी को स्मरण करने में कठिनाई न पड़े। ये सूत्र केवल गुरुयों को ब्याख्या के द्वारा ही समझे जा सकते थे । ये गुरु ही उन सूत्रों की व्याख्या