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संस्कृत साहित्य का इतिहास
ने इस ग्रन्थ के अतिरिक्त ये ग्रन्थ और लिखे हैं- काव्यप्रकाश की टीका महिभट्ट के व्यक्तिविवेक की टीका, साहित्यमीमांसा, नाटकमीमांसा, बाण के हर्षचरित की टीका हर्षचरितटीका, अलंकारानुसारिणी और सहृदयलीला । हर्षचरितटीका के अतिरिक्त अन्य सभी ग्रन्थ काव्यशास्त्र विषयक हैं । सहृदयलीला में इस बात का वर्णन है कि एक सहृदय व्यक्ति को किस प्रकार का जीवन व्यतीत करना चाहिए ।
सोम के पुत्र एक जैन विद्वान् वाग्भट्ट ने अलङ्कारों पर एक ग्रन्थ वाग्भटालंकार लिखा है । इसके पाँच अध्यायों में उसने काव्य, काव्य का स्वरूप, भाषा, गुण, अलङ्कार, रस और साहित्यिक परम्पराओं का वर्णन किया है । यह लेखक १३वीं शताब्दी ई० के प्रारम्भ का है । उसी समय ग्रल्लराज ने रस विषय पर रसरत्नप्रदीपिका नामक ग्रन्थ की रचना की थी । जयदेव ने चन्द्रालोक लिखा है । वह एक प्रसिद्ध नैयायिक, नाट्यकार श्रीर साहित्यशास्त्री था । वह १२५० ई० के लगभग हुआ था । उसने नाट्यशास्त्र को छोड़कर शेष सभी काव्यशास्त्रीय विषयों का विवेचन सरल और रोचक ढंग से किया है । शारदातनय लगभग ( १२५० ई० ) ने दस अध्यायों में भावप्रकाशन ग्रन्थ लिखा है । उसने काव्यशास्त्रीय विषयों के वर्णन में भरत का अनुसरण किया है और भरत से भिन्न विचारों का भी उल्लेख किया है । उसने रस को काव्य की आत्मा माना है । उसने शान्त को रस नहीं माना है । उसने भोज के अ ुसार ही शृंगार रस को विकसित किया है । नेमिनार का पुत्र एक जैन विद्वान् वाग्भट्ट और हु है । वह वाग्भट्टालङ्कार के लेखक वाग्भट्ट से भिन्न है । वह १३वीं शताब्दी के अन्त में हुआ था । उसने पाँच अध्यायों में काव्यानुशासन ग्रन्थ लिखा है । यह सूत्ररूप में है और उस पर लेखक ने स्वयं अलंकारतिलक नाम की टीका भी लिखी है । विषय की दृष्टि से यह वाग्भट्टालङ्कार के तुल्य ही है । लगभग इसी समय अमृतानन्दयोगी ने अलंकारसारसंग्रह ग्रन्थ 'लिखा है । इसमें काव्यशास्त्रीय सभी विषयों का वर्णन है ।